Book Title: Sutak Sambandhi Shastriya Saral Samaj
Author(s): Vijayjaidarshansuri
Publisher: Jinagna Prakashan

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Page 54
________________ સૂતક સંબંધી શાસ્ત્રીય સરળ સમજ વિ. સં. ૧૯૪૮માં છપાયેલ પુસ્તકનાં પૃ. 177 થી ૧૮૨ના લખાણને રજૂ કરીને સૂતકવાળાઓ શ્રી જિનપૂજાનો પ્રતિબંધ ફરમાવવાની તનતોડ મહેનત કરે છે. તેઓ તરફથી રજૂ થયેલ પૃ. 177 થી ૧૮રનું લખાણ નીચે મુજબ // अथ १४मा प्रश्नोत्तर लि. / / (प्रश्न) श्री खरतरगच्छ के विषे पुत्रादिकों के जन्म मरणमें सूतक गणते हे (तहां) 10 दिन 11 दिन 12 दिन पर्यंत खरतर साधु भिक्षा ग्रहण नहीं करते हैं (और) कोई गच्छोमें सूतक शंका नही रखते हैं / सो कहां मूलग्रंथोमें सूतकगृहका वर्जन किया है (वा) नहीं / (उत्तर) श्री जिनपतिसूरि महाराजने अपनी सामाचारीमें दस दिन पर्यंत सूतक मृतककुलोंका सामान्यसे वर्जन किया है / (तिस्मे) पुत्र के 10 दिन पुत्री के 11 दिन (और) मृतक 12 दिन पर्यंत, सूतककुलका आहारादि वर्जन करना // 1 // (इसीतरै) तरुणप्रभसूरिकृत षडावश्यक बालावबोधमें भी कहां है / ___ (प्रश्न) कोइ मूलसूत्रोंकी टीका चूर्णी भाष्यादिके विषे प्रमाण है (वा) नहीं / (उत्तर) श्री सुयगडांगजीके विषे (सागारियापिंडं) इस पदके व्याख्यामें, सूतकगृहका निषेध श्री शीलांकाचार्य महाराज कर गये है // 1 // (इसीतरै) श्री आचारांगसूत्रके दूसरे श्रुतस्कंध अध्ययन के चोथे उदेशेमें (गामेलं निरुद्धाए) इत्यादि पदके व्याख्यानमें टीकाकारजीने सूतकगृहका अन्नादिक निषेध किया है / (इसीतरे०) श्री निशीथभाष्यचूर्णीके विषे भी कहा है / जे भिक्खु दुगंछियकुलेसु इत्यादि पाठका अर्थ लिखते है / जे भिक्षु दुगंछनीक कुलमें आहारादिक ग्रहण करै / उस्कों चतुर्लघु प्रायश्चित्त लगता है (फेर) उसीमें दो तरैके दुगंछनीय कहे हैं। एक तो इत्वर (और) दुसरो यावत्कथिक, तिसमे जो सूतकगृह हे (वो) इत्वर अर्थात् अल्पकालीन है। और यावत्कथिक चमार, डुंबादिकके घरका आहार यावज्जीव छोडने योग्य है / (फेर इसीतरे) श्री दशवैकालिकसूत्रके पांचमा अध्ययनमें, श्री हरिभद्रसूरिजी कृत बडी टीकामें, सूतक गृहमें प्रवेश करना मना किया है (फेर) प्रशमसूत्र वृत्तिविषै पण कहा

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