Book Title: Sutak Sambandhi Shastriya Saral Samaj
Author(s): Vijayjaidarshansuri
Publisher: Jinagna Prakashan
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________________ સૂતક સંબંધી શાસ્ત્રીય સરળ સમજ 18 समयमें जानने, आपत्कालमें सबको सूतकमें ही सूतक नहीं लगता।" આપત્કાલ વગેરે બતાવતા કહે છે : "अथ कर्मतः त्रिंशच्छ्लोक्यां :तत्तत्कार्येषु सत्रिवतिनृपनृपवद्दीक्षितत्विक्स्वदेशभ्रंशापत्स्वप्यनेकश्रुतिपठनभिषक्कारुशिल्पातुराणाम् / संप्रारब्धेषु दानोपनयनश्राद्धयुद्धप्रतिष्ठाचुडातीर्थार्थयात्राजयपरिणयनाद्युत्सवेष्वेतदर्थे / / नाशौचमिति शेषः // " &iii टी.st : “त्रिंशत्श्लोकी में कहा है कि, अन्नयज्ञ करनेवाला, व्रती, राजा, दीक्षित, ऋत्विज, अपने देशका नाश, विपत्ति, अनेक वेदोका पाठ, वैद्य, कारु, शिल्पी, रोगी, दान, यज्ञोपवित, यजन, श्राद्ध, युद्ध, प्रतिष्ठा, मुण्डन, तीर्थकी यात्रा,जय, विवाह इनका प्रारंभ इनके उत्सवो के उस उक्त कार्योमें अशौच नहीं होता।" (पृ. 830) "न वतिनां व्रते' इति विष्णुक्तेः // डिंडी.टी.st : "विष्णुने कहा है कि, व्रतवालोका व्रतमें अशौच नहीं है।" (पृ. 831) "विवाहदुर्गयज्ञेषु यात्रायां तीर्थकर्मणि न तत्र सूतकं... इति पैठिनसिस्मृतेः।।" हिंदी 20 : “पैठिनसिकी स्मृतिमें लिखा है कि विवाह, दुर्ग, यज्ञ, यात्रा, तीर्थ, कर्म इनमें सूतक नहीं।" (पृ. 831) "अत एवोक्तं ब्राह्मे : - गृहितनियमस्यापि न स्यादन्यस्य कस्यचित् इति / / एवं देवपूजादि / / मदनपारिजाते यमोऽपिः शिवविष्ण्वर्चनं दीक्षा, यस्य चाग्नि परिग्रहः / श्रौतकर्मणि कुर्वीत, स्नातः शुद्धिमवाप्नुयात् / / " "गौड शुद्धितत्त्वे मन्त्रमुक्तावल्याम् :जपो देवार्चनविधिः, कार्या दीक्षान्वितैनरैः / नास्ति पापं यतस्तेषां, सूतकं वा यतात्मनाम् / / " डिंही टी.st : "इसीसे ब्रह्माने लिखा है कि, जो कोई नियमपूर्वक करै उसको सूतक नहीं करना चाहिये, इसी प्रकार देवपूजा आदिमें जानना / मदन

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