Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वंदन-अभिनंदन !
बहमुखी व्यक्तित्व का निर्माण किया है वह सभी के लिए | को नव जीवन प्रदान किया है - जीणोद्धार करा कर। अनुकरणीय है।
आपने साहित्य लेखन में भी पूर्ण कार्य किया है। इतिहास ___ संयमी जीवन के पचासवें वर्ष/स्वर्ण जयन्ति उत्सव में आपकी विशेष रुचि रही है। इसके अतिरिक्त सैद्धान्तिक, के अवसर पर मैं इनके सुदीर्घ संयमी जीवन की कामना जीवन परक एवं प्रवचन साहित्य भी आपका प्रकाशित करता हुआ भविष्य और सुखद उल्लास पूर्ण होगा, ऐसी हुआ है। समय समय पर आपने संघ को कुशल नेतृत्व भी आशा करता हूँ।
प्रदान किया है। पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक
भण्डारी श्री पद्म चंदजी म. ने आपकी इसी नेतृत्व क्षमता 0 सौभाग्य मुनि 'कुमुद' श्रमणसंघीय महामंत्री
को परखकर सन् १६८७ के पूना साधु सम्मेलन में आपको अपना प्रतिनिधि बनाया था तो वहाँ पर आचार्य प्रवर ने
आपको शान्तिरक्षक नियुक्त किया। आपकी इसी नेतृत्व ( गुणों के धारक महापुरुष ) कुशलता के कारण आप जहाँ भी जाते हैं वहीं अपनी
धाक जमा लेते हैं। आपने उत्तर से लेकर दक्षिण तक की साहित्य के विविध विधाओं में जीवन चरित्र भी एक
लम्बी विहार यात्रा की है। आपके इस गौरव पूर्ण संयमी उत्तम विधा है। सृष्टि के प्रारम्भ काल से ही जीवन चरित्र
जीवन से उपकृत सब आपका अभिनन्दन कर भगवान लेखन की परम्परा प्रचलित रही है। इसमें कोई सन्देह
की इस महान वाणी “कंखे गुणे जाव सरीर भेउ" को नहीं है कि यह विधा अतीत से शुरु हुई और पवित्र गंगा
चरितार्थ कर रहा है। की जलधारा की भाँति निर्बाध रूप से भविष्य में भी गतिशील रहेगी।
यह आपका अभिनन्दन नहीं अपितु उन महान गुणों
का अभिनन्दन है जिनके लिए महाभारत के उल्लेख के वस्तुतः मानव जीवन के निर्माण में जीवन चरित्र से
अनुसार महाराजा परीक्षित ने कहा था - "न हि तृप्यामि बढ़कर कोई दूसरा ऐसा सशक्त आलम्बन नहीं है। विश्व
पूर्वेषाम् शृण्वांश्चरितं महत्" अर्थात् महापुरुषों के महान का प्रत्येक महापुरुष अपनी शक्तियों को जागृत कर
चारित्र को सुनते हुए मुझे तृप्ति नहीं होती बल्कि इच्छा आत्म-बल और आत्म-विश्वास उत्पन्न करता है। महापुरुषों
रहती है कि इन्हें निरन्तर सुनता रहूँ। वस्तुतः ऐसे गुणों के उत्तम त्याग, तप, क्षमा, वैराग्यादि गुणों को देखकर
के धारक महान् सन्त पुरुष विरले ही होते हैं। ऐसे मानव अपने जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं को
महानपुरुषों के लिए ही किसी कवि ने कहा था - साहस पूर्वक पार करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। ऐसे ही महान संत हैं - श्रमण संघीय सलाहकार मंत्री श्री
अगर ये सत्य संयम का हृदय में बीज न बोते, सुमनमुनि जी म.। पूज्य श्री सुमन मुनि जी महाराज का
तो संसार-सागर में हम खाते सभी गोते। जीवन तप, त्याग, अध्यात्म विद्या, ज्ञान, ध्यान आदि से
न पावन आत्मा होती, न जीवित मंत्र ही होते, ओत प्रोत है। आप ५० वर्षों से संयम साधना करते हुए
कभी का देश मिट जाता जो ऐसे सन्त न होते।। निरन्तर स्वयं के कल्याण में तत्पर हैं। इस अर्द्ध शताब्दि प्रकाशमान अभिनन्दन ग्रन्थ ऐसे ही उज्ज्वल समुज्जवल के संयमी जीवन में आपने समाज सुधार के अनेक उपक्रम गुणों के आधारभूत महान सन्त पूज्य श्री सुमन मुनि जी किए हैं। कई संस्थाओं का नव निर्माण कराया तो कइयों | महाराज का अभिनन्दन ही नहीं अपितु इतिहास और
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