Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
जी भी संत के रूप में व्यक्ति हैं। बाह्य दृष्टि से एक ___ गुरुअनुशासन, शास्त्रीय मर्यादा, संघीय इच्छा सभी सामान्य मुनि दिखाई देंगे किन्तु यदि उनका वास्तविक को व्यवस्थित चरितार्थ करते हुए जीवन को आदर्श की परिचय पाना है तो उनकी आन्तरिकता में जाइए, उनसे ऊँचाईयों की तरफ बढ़ाते रहे, बुलन्दियों को छूते रहे तो ज्ञान चर्चा करके, उनका प्रवचन श्रवण करके, साहित्य एक सफल जीवन की साधना बनी। पढ़कर उन्हें देखिए-समझिए। साधारण देह छवि के पीछे
संघ आज आपका अभिनन्दन करने को प्रस्तुत है तो कितना विराट और महान व्यक्त्वि छिपा हुआ है, आप
अहेतुक नहीं है। संयमी जीवन की परिपक्वता में संघ का उसका परिचय प्राप्त कर धन्य हो जायेंगे।
यह अभिनन्दन जिन शासन के लिए ही गौरव का प्रसंग निश्चित ही व्यक्ति कैसा भी क्यों न हो बाह्य परिवेश में सीमित ही हुआ करता है किन्तु उसका आन्तरिक
मुनि सुमन कुमार जी को मैं ठेठ बचपन से जानता व्यक्तित्व कितना विराट और विशाल हो सकता है,
हूँ। सादड़ी सम्मेलन में हम दोनों लघु वय में दीक्षित संत इसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता।
थे। हम सभी के स्नेह पात्र थे। प्रायः साथ-साथ रहते। मुनि सुमनकुमार जी सीमित होकर भी विराट् हैं,
उसके बाद और भी सम्मेलनों में हम मिलते रहे, विशाल अन्तर से, भावनाओं से, ज्ञान से और कर्म से।
श्रमण संघ का कार्य मिलकर करते रहे। आज भी हमारा यह विराटता, यह कर्मठता उन्हें विरासत में नहीं मिली है,
यही क्रम विद्यमान है। यह इनकी साधना का उपार्जन है।
- हम युवा मुनियों में मुनि सुमनकुमार जी की एक राजस्थान जैसे आनबान के पक्के प्रान्त के एक चौधरी
अलग ही छवि रही, स्पष्ट वक्ता की। यह छवि आज भी परिवार में जन्में श्री सुमनकुमार जी ने बचपन में ही मुनि
वैसी ही विद्यमान है। जीवन पा लिया। यह उनके पूज्य गुरुवर श्री महेन्द्र कुमार जी म. की पुण्य-श्लोकी कृपा का ही प्रसाद है जिसे
बड़े सन्तों को जो बात हम संकोचवश नहीं कह पाकर ये धन्य-धन्य हो उठे। अब तक पचास वर्ष संयम
| पाते, मुनि सुमन कुमार दृढ़ता के साथ स्पष्ट रख देते थे। साधना में लगा दिए। पचास वर्ष का समय छोटा नहीं
यह इनकी विशेषता थी। होता। कोई पीछे मुड़कर अपने पचास वर्षों पर दृष्टिपात ___ मुनिजी की इस स्पष्टवादिता से कोई यह सोचे कि करे तो हजारों मील दूर जैसा लगेगा। इस लम्बे संयमी मुनि जी कुछ तेज हैं तो सोच सकता है, कोई आपत्ति जीवन में समय की बहती धारा के साथ अनेकों खिले नहीं। स्टोव और बल्ब में भी तेज होता है। वह तेज खिलाए सुगन्धित फूल भी आए होंगे तो कठोर कंकड़ पकाने और प्रकाश देने का काम करता है। अतः उपयोगी पत्थर के ढ़ेर भी आते रहे होंगे। यह धारा कभी समतल
है। मुनि श्री का तेज भी एक उपयोगी तेज है जो संघ व पर बही होगी, तो कहीं घाटियों में भी बही होंगी किन्तु
समाज के लिए कहीं न कहीं हितावह होता है। सभी को मुस्कुराते हुए पार किया मुनिजी ने। कंकड़ मुनि श्री अभी हमारे संघ में मंत्री पद पर हैं, सुयोग्यता पत्थर और कांटों का भी स्वागत कर उन्हें चलने दिया । के साथ अपना दायित्व निभा रहे हैं। मुनि श्री अच्छे होगा तभी तो संयमी जीवन की इस बहुमूल्य धरोहर को | विद्वान, वक्ता और लेखक हैं। पिछले पचास वर्षों से निधि सुरक्षित रख पाए हैं। जीवन में सतत् प्रयल कर जिस तरह इन्होंने अपने
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