Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 17
________________ । ब्रत अरु सम्यकदर्शन इनका अतीचार सहित कथन है। तीसरी प्रतिमाविर्षे सामायिकका अरु सामायिकके | अतीचार बत्तीस अरू फेरि सामायिकके बाईस अधिारमहा अरु समाविष्ट कलां चारित निनारकनिका कथन है। १६० । सातवों प्रतिमा ब्रह्मचर्य है सो ब्रह्मचर्यके चारि भेदनिका तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मणके दश अधिकारका i अरु शीलकी महिमा अरु कुशोलका निषेध दस गाथानि कर रोसै ब्राह्मणको परीक्षाकं सिरलिंगादि चारि चिनका तहाँ ही श्रावकके भोजनमें सात अंतरायका । २१२। श्रावकनिके विचारवे योग्य सतरह नियमका 1 ११२। श्रावकके इक्कोस गुण हैं तिनका। २६३ । अन्य मतनके अनुसार ब्राहाणके लक्षणका जोर तहाँ तिनके शास्त्र अरु शास्त्रनिके कर्ता आचार्य तिनकी साक्षी सहित ब्रह्मका। सो जिनमें राते गुण होंय सो ब्रह्म है । १६४। अन्यमत संबन्धी मारकण्डेजी प्राचार्यकृत सुमति शास्त्रमें जल छानवैका कथन किया, जरु बिना गालेका दोष कथन है १६५। व्यासजी कृत भारत नामा शास्त्रका सातवा स्कंध विष ऐसे वचन हैं कि ब्राह्मण को शोल सहित रहना | वैराग्यादिगुण सहित रहना। २६६ । सुमतिशास्त्र मारकण्डेय ऋषिश्वर कृत तामैं कही भोजन दिनके च्यारिपहर रहैं तिनमें करै तो कैसा २ फल होय है ऐसा कथन है।१६७। शिवपुराण में ऐसी कही है जो ब्राहरणको रातीवस्तु खावना योग्य नाहीं। १६८। अन्यमतके कश्यप नामा आचार्य तिनने कही है जो विष्णभक्त होय ताक कन्दमूल स्वावने योग्य नाही: ऐसा कहा है। २६६ । शिवपुराण अन्यमत सम्बन्धी तामैं कही है जो दया समान तीरथ नाहीं। २००। अन्य मतिनमें ब्राह्मणके दस भेद कहे हैं। २०२। ऐसे अन्यमतनका मी रहस्य दया सहित बताय, ब्रह्मचारीका स्वरूप बताय, पोचं आठवीं प्रतिमा आदि ग्यारहवीं आदि प्रतिमा पर्यंत कथन है। २०२ । ग्यारहवीं प्रतिमामें ऐलक छुल्लक करि दोय भेद श्रावक के कहे हैं । २०३ । मुनि श्रावक का कथन पूरणकर शास्त्र पूरण होते अंतमंगलरूपतीनि काल सम्बंधीचौवीसी भरत क्षेत्रको तिनके नाम, व वर्तमान चौबीसीके समयके पुरुषनिका अरु सिद्ध क्षेत्रनि कौं नमस्कार रूप कथन है । २०४। तीन लोक विष तिष्टते आठ कोड़ी छप्पन लाख सत्यारा हजार च्यारिसौ इक्यासी अकृत्रिम जिन मंदिर हैं तिनकी रचना अरु विस्तारका कथन अरु तिनकों मंगल निमित्त नमस्कार रूप कथन है। २०५। मंगल निमित्त शास्त्रके अंत में पंच परमेष्टी का कथन है। २०६ । अंत मंगल निमित्त श्री अरिहंतदेवका विराजिवेका समोशरणका विस्तार सहित वर्णन है तहां विराजते भगवानक

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