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हैं । १२८ । सतसंगका किया अनादर भी गुणकारी है । ११९६४ मलेच्छपके षट् भेद हैं । १२०० मूढ़ता के सात भेद बताये हैं । १२१ | सम्यक ज्ञानविषै अरु मिथ्या ज्ञान विषै दृष्टान्त पूर्वक अन्तर अरु फलभेद बताये हैं । १२२ ।
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इन्द्रिय सुखनि तैं आत्माकी तृप्ति नहीं भई । १२३| नरक पशूनिके दोर्घ दुःखनितें नहीं डरचा तो तप संयम के अल्प दुःखनितें क्यों डरो हो ? ॥१२४ | सर्व कषायनि तैं माया कषायका पाप बड़ा बतावता कथन है । २२५॥ पुण्य वृक्षका फल ईन्द्रिय सुख है सो धर्मघातक नाहीं जीवकूं दुःखदाई नाहीं । १२६१ मुनीश्वरोंके मोक्षमार्गका साधन एक, धर्मी | श्रावकनिका मन्दिर है ऐसा कथन है। १२७ बुद्धिपाये व धन पायेका कहा । १२८ । एते निमित्तकाल समान जान तजना | योग्य है । १२६ । एती जगह यतीश्वर नाहीं रहें, रहें तो संजम भ्रष्ट होय । १३० । ऐते जीवनिका विश्वास नाहीं । करिये। ३३२१ मुखमोठा, पीछे तें द्वेष भाव करें ऐसे मित्रनकूं दूरतें तजना | १३२ | ऐसी सभा विषै सभा-विरुद्ध | नाहीं बोलना । १३३ । धर्मशास्त्रपदे के रोते गुण नहीं भये तो पढ़ना बायस (कौवा) के शब्द समान है । २३४ । मरण से भी निद्राको अनिष्ट बतावें हैं । २३५ दुष्टजीवनका स्वभाव हा देह (३६६ पूर्व शरीर विषै रोग होय तिनको दीर्घता बताबें है । २३७ कह हैं जो और रोगनकी ओर नाहीं । २३८ इष्टवियोग अनिष्ट संयोग कहां है कहां नाहीं । १३६ । कालतें आगे मानिकें बचा चाहै सो कोई उपाय नाहीं । २४० अग्रिके तीन भेद हैं सो कौन सी अग्रि काहे को बालै । २४२ । कहे हैं जो तप संयम विद्यादि भले गुण रूपीरतन हैं तिनके ठगवेक इन्द्रिय सुख ठग समान है। २४२ । इष्टवियोगके दो भेद हैं । २४३ | जैसी परगति बिषयकषायनमें एकाग्र होय है, तैसी धर्म विषं होय तो कहा होय ? | २४४ | कृपण अपने तनकूं ठगे है। २४५ । कौन के अतिशय सहित उपदेश वचन हैं अरु कौन के अतिशय रहित उपदेश वचन हैं ऐसा कथन है । २४६ | भिखारी घर-घर मांगे है सो मानं उपदेश ही देता फिर है । २४७ नव मेद जीव उपजनेके योनि स्थानके हैं । २४८ तीन भेद गर्म योनि के हैं । १२४६१ आठ जगह निगोद नाहीं । १५०१ निमित्त ज्ञानके आठ भेद हैं । २५२ आगे जाठ अंग ज्ञान के हैं । २५२ | ध्यान करवे योग्य स्थान बताये है । १५३ । आलोचना के अतीचार दश हैं । १५४ | आचार्य जिस अवसर में दीक्षा नहीं दें ऐसे काल दश हैं तिनको टाल दीक्षा देय हैं । १५५१ श्रीगोम्मटसार सिद्धान्त के अनुसार दश कारण हैं तिनके | निमित्त पाय कर्मको अवस्था अनेक प्रकार होय है तिन कारणिका कथन है । १५६। मिथ्यात्वके दोय मैदनिका.
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