Book Title: Sudrishti Tarangini
Author(s): Tekchand
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 14
________________ श्री सु T fe शुद्धात्मा मैं नहीं । ८७ खिंडी महारादि राजानि की विभूति विनाशोक बतावता कथन है मातापितादि सज्जन कुटुम्बी अपने २ स्वारथरून बंधन तैं बँधे हैं | ८ | जिन २ वस्तूनिका स्वभाव सहज हो चंचल है तिनके मेटवे को कोई उपाय नाहीं । ६० । ऐसा कहै हैं जो कोऊ महापंडित भी होय अरु श्रद्धानरहित मिथ्या श्रद्धानी होय तो तार्के मुखका उपदेश सम्यक दृष्टोनिक सुनना योग्य नाहीं । ६१० सर्व की क्रूरता तैं दुष्ट जीवनको 'क्रूरता बहुत बतावे हैं ऐसा कथन है । ६२ । सज्जन दुर्जन जीवनिका स्त्ररून दृष्टान्तपूर्वक कथन किया है। ९३ । भला उपदेश भी मूर्ख जीवनि कूं कारजकारी नाहीं । ६४ । कैनेक जीव दयारहित हैं ऐसा बतावता कथन है। ६५ । कृपणका धन कहा होय ? 1 ६६ । केरेक जीव दयारहित हो हैं तिनकों बनावता कथन है। ६७ । संतोषी | आत्मा आपकूं दरिद्रावस्थामें भी सुखी भया मानि दारिद्रकं असोस देय हैं । ६८ । धर्म सेवनहारे जीव संसारमें च्यारि प्रकार भावनको वाञ्छा सहित धर्मका साधन करें हैं । ६६ । छन्द काव्यके वक्ता कवीश्वर काव्य छन्द की जोड़ कला करणहारे पण्डित पाँच प्रकार हैं सो अपने अपने स्वभाव के लिये छन्दनिको बनावें हैं । २०० / पंचमकालकी महिमा जो यामैं वांछित निर्मित नाहीं ऐसा कथन है । २०३। अपने शुद्ध भावनि बिना संजम ध्यान कार्यकारी नाहीं ऐसा कथन दृष्टान्तपूर्वक कहैं हैं । १०२ । अपने हित रूप सुवर्णके परखिवेकों कसौटी समान नव स्थान हैं तिनका कथन है । २०३। इन कसौटी समान स्थानकन पै कौनको परखिये ? | १०४ एक रोग के दुःखकूं उपचार अनेक जीव अनेक रूप अपनी-अपनी दृष्टी प्रमाण बतावें ॥ २०५ | घर कुटुम्बको तज, फेरि घर चाह, कुटुम्बादि हितू चाहें, घर घर दोन होई याचे, जाको आचार्य कहा कहै ? । १०६ । कौनके वास्तै काहे कं तजिये ? । २०७ । जो जो देशमें राती वस्तु नहीं होय तो विवेकी तहां नहीं रहें । १०८ । इन दश स्थानकनिमें लाज नहीं करिये ऐसे स्थानक बताये । १०६ । जाके बल होय सो बलवान है । ११० । स्नेह समान और बल नाही, हित है सोही भुजबल और सैन्य बल है । १११ । नोति मार्गरूप परिणति सोही बड़ी सेना वा भुजबल है । २२२ । अनेक सकटनिमें एक पूर्वोपार्जित पुण्य सहाय है । ११३ । एती वस्तुभई, कार्यकारी नहीं । २२४ । आगे राती वस्तु पर उपकारनिमित्त । २१५। धर्मात्मा जीवनिकं इन स्थानकनिमें लड़ा करना योग्य नाहीं । १२६ । एती बात कहे हैं जो संकटमें सत्पुरुषनिको साहस ही सहाय है । ११७ क है हैं जो यतीन स्थान पंडितनके हँसने के कारण ६

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