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कर्म स्थिति बधि ?।५७। पंच इन्द्रियका विषय कितना है ताके प्रमारा। ५८। पंचगोलक निगोदके हैं तै कहां । कहां हैं ?।१६। निगोदि जीवन के प्रमाणकी अनन्तता महा दीर्घ है।।६०। निगोदिके दौय भेद हैं। ६ ५ षटकाय जीव जघन्य आयु पावै तौ एक अन्तम हुर्त मैं केतेक भव करें।६२। सुतप कुतपका कथन है । ६३। | सुतपके बारह भेद हैं तहां जालोचनातपके अतीचार दश हैं। ।६४। कौऊ मुनिमें दीर्घ दोष पड़े तौ ताकी 'जाचार्य, दीर्घ दंड कौन कौन दीजिये ताका कथन है । ६५। विनयतपके पांच भेद हैं। ६६ । सुव्रतके भेद बारह हैं अरु कुव्रत हैं। ६७1 बारह अनुप्रेक्षा हैं।६८। सुदान कुदानका कथन है तह! सुदानकै चारि भेद हैं। ६६। जिनकू दान दीजिये सो पात्र हैं तिनके सुपात्र कुपात्र करि दोय भेद हैं तिनके विशेष भेद पन्द्रह, तिनका अरु तिनके दानके फलका पाचन है। ७०। पूजा मंद दोष है या सुधजा एक कुपूजा। ७। तोरथ दोय हैं | एक सुतीरथ एक कुतीरथ । ७२ । चरचा भेद दोय हैं एक सुचर्चा, एक कुचर्चा। ७३ । बहुरि अनुमोदनाके भेद दोय हैं कहां तो अनुमोदना किये पापबन्ध होय, सो तो पाप अनुमोदना अशुभ है। राक अनुमोदना किये | पुण्य होय सो शुभ अनुमोदना है। ७४ । मोक्षके भेद दोय हैं एक तो भोरे जीवनिकी कल्पी कर्ममलसहित मोक्ष है और एक शुद्ध निरंजन सर्व कर्म मलरहित निर्दोष मोक्ष है । ७५ । कुहान सुज्ञान करि ज्ञानके दोय भेद हैं | तहाँ मतिज्ञानकै तीनिसौछत्तीस भेद रूप वर्णन है। ७६ । श्रुतज्ञानका कथन है तहाँ व्यय ध्रुव उत्पात, ज्ञाता ज्ञेय ज्ञान, ध्याता ध्येय ध्यान, कर्ता कर्म क्रियाका कथन है। ताहीमें संक्षेप तै पल्य सागरका कथन है। ७७। पी, कृतघ्नी विश्वासघातीका दृष्टान्तपूर्वक कथन है । ७८ । च्यारि गति, पाप पुण्यके फल प्रगट जनावनहारे प्रागति जागति (आने जाने)रुप दंडकका कथन है । ७६ । निमित्त उपादानका सुबनिज कुबनिजका बहुरि श्रुतज्ञान समानरूप कथन है । ८०। अवधिज्ञानका कथन है तहां देशावधि परमावधि सर्वावधि करि तोनि भेद रूप कथन है तहाँ देशावधिके हीयमानादि षटभेद रूप कथन है। ५। अर सोई अवधि, मवप्रत्यय गुणप्रत्यय दोष भेद लिये है। ५२ । मनःपर्यय, ऋजुमति विपुलमति करि दोघ मैद रूप है । प३। संक्षेपत केवलज्ञानका 'कथन है।८४ा आगे कहैं हैं जो यह आत्मा अपनी आयुके दिन सोई भरा मोतिनकी मालातिनको वृथा खोवे ।। | है। ६५ । आत्मा अपनी भूल तैं पाप ही बंध प्राप्त होय ऐसा दृष्टान्त देय बता हैं। ८६ । त्रयोदश भय ||