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पाय निर्दोष ग्रन्थकर्ताका कथन है। १६ । बहुरि ग्रन्थक आदि, आचार्य षट्कार्यनिका कथन करते पाये तिनका कथन है। २०१ पीछै ग्रन्थके आदि मंगल करिये, सो मंगलके षट भैदनिका कथन है ॥२॥ आगे जिन ग्रन्थनि में ए सात कथा होय सोग्रन्थ मंगलकारी होय। तिन कथानि का कथन है। २२। फिर जिन सर्वक्षभाषित ताव, जीव अजीवनि का कथन सत्य है। ऐसा कहते तरकी नै अनेकमतन संबंधी तस्व सत्य बताय प्रश्न किया। सो तिन अन्य मतीन के भाषे जीवादि तावनिमें अरू सर्वज्ञ-भाषित तावनि विष अन्तर है। तिनके कथन का अनेक नय दृष्टान्त युक्ति रूप कथन है। तहाँ कोई ब्रह्मवादी संसारमें एक आत्मा माने है। कोई अवतारवादी मोक्ष-आत्मा कू अवतार माने है। और कोई क्षणिक मती बीव छिन-छिन मैं शरीर दि उपना मान है। कोई साधादी आत्मा की उपजावनहारा माने है। कोई नास्तिकमती जीवका अभाव मान है। कोई अज्ञानवादी मोक्ष विष ज्ञानका अभाव मानें हैं। और कोई मजीव की जीव मानें हैं। स्थिरवादी रोसा मानें हैं, जो जैसा मरै सोही उपजै। कोई जीव को अजीव माने हैं। इत्यादिक भरमवादीनका भरम मेटवै कौं सर्वज्ञ-भाषित तत्त्वनिका स्वरूप कथन है ।२३। बहुरि सत्य असत्य आप्त प्रागम पदार्थ तिनका कथन है । २४। पिछे शुद्धदेवके जानिये का अतिशय चौतीस आदि छियालीस गुसनिका कथन है।२५। बागे जामें यते दोष होय सो देव नाहीं। ते दोष कोन, तिन अष्टादश दोषनिका कथन है ।२६।। बहुरो कुदेवनिका कथन है ।२७। आगे कुगुरुके यहचानवैकू गुणलक्षणका कथन है ।२८। फेरि सुगुरुके मूल गुश भट्ठाईस हैं तिनमें एषणा समिति विष मुनिके भोजन में छियालीस दोष हैं। तिनका कथन है। तहाँ भोजन समय बत्तीस अन्तराय बंधे, उनका तथा मल दोषनिका कथन है। २६। आगे बाईस परोषहनिका कथन है।३०। आगे पंच महाव्रत, पंचसमिति, षड़ावश्यक, पंचेन्द्रीवशीकरस आदि अठाईस मलगुणनिके कथनमें षड्आवश्यकनका विशेष निर्णय है।३३। आगे मुनीश्वरनिके दश भेदनिका कथन है ।३२। बहुरि आचार्यनिके गुणनि वि दशलणधर्म, बारहतप, पंचाचार, षडावश्यक, तीनि गुप्ति, इन छत्तीस गुणनिका कथन है ।३३।। मागे सत्यधमके दशभेदनका कधन है। ३४ । बहुरि दश अतीचार ब्रह्मचर्य के हैं तिनका कथन है। ३५॥ बागे उपाध्यायजीके पच्चीस गुण विर्षे ग्यारह अंग, चौदह पूर्वका कथन है। तिनमें त्रिलोक बिंदु पूर्वके कथनमें