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भत्तीए जिणवराणं, खिजंती पुव्यसचिया कम्मा।आयरियनमोकारेण, विजामंताय सिज्झंति ॥३३॥
जिनश्वरांनी भक्ति करवाथी पूर्वसंचित को क्षय पामे छे. आचार्यने नमस्कार करवाथी विद्या अने मंत्री सिद्ध थाय छे. (३३). अहिं नमस्कार ए भक्ति ज छ अथवा 'आउसंतेणं तिए शब्द भगवाननु विशेषण छ. आयुष्मान् चिरंजीवी भगवानवडे ए प्रमाणे तेनो अर्थ छे. आ विशेषणथी भगवाननुं बहुमान मंगळरूप होवाथी भगवान- बहुमानगर्भित मंगल कहेलुं छे. अथवा 'आयुष्मत्ते'ति बीजा माटे (परोपकार माटे) देशनादि प्रवृत्ति वगेरेथी, प्रशस्त आयुष्यने धारण करनारा मोक्षप्राप्ति करीने पण तीथनो तिरस्कारादि जोइने, अभिमानादि भावथी फरीने आ लोकमां आवनारनी जेम अप्रशस्त आयुषने धारण करता नथी. इतरधर्मी केटलाएकवडे आम कहेवाय छे के धर्मतीर्थना करनारा ज्ञानीओ, परमपद (मोक्ष) पामीने, तीर्थना तिरस्कारथी फरीने पण संसारमा आवे छे. जेमके
[यदा यदा हि धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत ! । अभ्युत्थानमधर्मस्य, तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम् ॥ १॥] ___एवी रीते ज रागद्वेषनो समूल नाश नथवाथी तेनुं वचन अप्रमाणिक छे. रागादिनो समूल नाश थये छते कया कारणथी फरी आ लोकमां आगमननो संभव थाय ? अथवा आयुष्मता प्राणने धारण करनारा, परंतु सदा संशुद्ध सिद्धरूपे नहि तेने अकरण(अशरीर)पणाथी बोलवानो असंभव छे. अथवा 'आवसंतेणं ति ए मया शब्दनु विशेषण छे तेथी आङिति-गुरुए
१. प्रथम 'आउस ! तेणं' ए बे पदोना भिन्न भिन्न अर्थ कहेल छे. अहि आउसंतेणं एक शब्दरूप कहेल छे ने ते भगवाननु विशेषण छ. २ मोक्षमा जइने फरो संसारमा अवतार धारण करवो ए अप्रशस्त छे.
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