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शत्रुजय पर्वब का परिचय।
जो पशु और पक्षी रहते हैं वे भी जन्मान्तरों में मुक्त हो जायेंगे । यहां तक लिखा है कि
मयूरसर्पसिंहाद्या हिंसा अप्यत्र पर्वते ।। सिद्धाः सिध्यन्ति सेत्स्यन्ति प्राणिनो जिनदर्शनात् ॥ बाल्येपि यौवने वार्ये तिर्यक्जातौ च यत्कृतम् ।
तत्पापं विलयं याति सिद्धाद्रेः स्पर्शनादपि ॥ अर्थात-मयूर, सर्प और सिंह आदि जैसे क्रूर और हिंसक प्राणी भी, जो इस पर्वत पर रहते हैं, जिन-देव के दर्शन से सिद्धि को प्राप्त कर लेते हैं । तथा बाल, यौवन और वृद्धावस्था में या तिर्यंच जाति में जों पाप किया हों वह इस पर्वत के स्पर्श मात्र से ही नष्ट हो जाता है । __इस प्रकार बहुत कुछ इस गिरि का, इस ग्रंथ में माहात्म्य लिखा हुआ है । भरतराज ने इस गिरि पर जो कांचनमय मंदिर बनाया था उस का पुनरुद्धार पीछे से अनेक देव और नृपतियों ने किया । पुराण युग में किये गये ऐसे १२ उद्धारोंका-तथा कुछ ऐतिहासिक युग के भी उद्धारों का वर्णन इस माहात्म्य में लिखा हुआ है । भरतादिकों ने जो रत्नमय और पिछले उद्धारकों ने जो कांचनमय या रजतमय जिनप्रतिमायें प्रतिष्ठित की थीं उन्हें, अन्य उद्धारकोंने, भावी काल की निःकृष्टता का खयाल कर, पर्वत के किसी गुप्त गुहा-स्थान में स्थापित कर देने का जिक्र भी माहात्म्यकार ने स्पष्ट कर दिया है । और लिखा है कि वहां पर-उन गुप्त स्थानों में--आज भी उन प्रतिमाओं की देवता निरंतर पूजा किया करते हैं ! पुराण-युग के १२ उद्धारों की नामावली इस प्रकार है
१-आदिनाथ तीर्थंकर के समय में भरत राजा का उद्धार । २-भरतराज के आठवे वंशज दंडवीर्य राजा का उद्धार ।
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