________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शत्रुजय पर्वत का आधुनिक वृत्तान्त । १९
~~~wwwmoramफास साहब भी कहते हैं कि- “प्रत्येक मन्दिर के गर्भागार में आदिनाथ अजितनाथ वगैरह तीर्थंकरों की एक या अधिक मूर्तिय विराजमान हैं । उदासीनवृत्ति को धारण की हुई इन संगमर्मर की मूर्तियों का सुन्दर आकार, चाँदीकी दीपिकाओं के मन्द प्रकाश में अस्पष्ट परंतु भव्य दिखाई देता है । अगरबत्तियों की सघन सुगन्धि सारे पर्वत पर व्याप्त रहती है। संगमर्मर के चमकीले फरसपर भक्तिमान् स्त्रिये, सुवर्ण के श्रृंगार और विविध रंग के वस्त्र पहन कर जगजगाहट मारती हुई
और एकस्वर से परंतु मधुर अवाज से स्तवना करती हुई, नंगे पैर से धीमे धीमे मंदिरों को प्रदक्षिणा दिया करती हैं । शत्रुजय पर्वत को सचमुच ही, पूर्वीय देशों की अद्भुत कथाओं के एक कल्पित पहाड की यथार्थ उपमा दी जा सकती है और उस के अधिवासी मानो एकाएक संगमर्मर के पुतले बन गये हों, परन्तु अप्सरायें आ कर उन्हें अपने हाथों से स्वच्छ और चमकित रखती हों, सुगन्धित पदार्थों के धूप धरती हों तथा अपने सुस्वर द्वारा देवों के शृंगारिक गीत गा कर हवा को गान से भरती हों; ऐसा आभास होता है।"
पर्वत पर नौ या दश टोंक हैं । प्रत्येक टोंक में छोटे बडे सेंकडों मन्दिर बने हुए हैं । यदि इन मन्दिरों का पूरा पूरा हाल लिखा जाय तो एक बहुत ही बडी पुस्तक बन जायें । इतने मन्दिरों का वृत्तान्त लिखना तो बड़ी बात है गिनती भी करना कठिन है । हम यहां पर संक्षेप में केवल नौ टोंकों का उल्लेख कर देते हैं।
१ चौमुखजी की टोंक। यह टोंक दो विभागों में बंटी हुई है । बहार के विभाग को 'खरतर-वसही' और अन्दर के को 'चौमुख-वसही' कहते हैं । यह टोंक पर्वत के सब से ऊँचे भाग पर बनी हुई है। 'चौमुख-वसही'
For Private and Personal Use Only