Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४ उपोद्घात “ धर्म प्रभाव से मेरा इतना सामर्थ्य है कि पत्थर से तो क्या परन्तु सीसे की पाटों से और सक्कर के थेलों से इस खाई को मैं पूरा सकता हूं ! बस यह कह कर सेठ ने उसी दिन, वहां पर टोंक बांधने के लिये संघ से इजाजत ले ली और खड्डा के पूर्ण करने का प्रारंभ कर दिया । थोडे ही दिनों में उस भीषण गर्त को पूर्ण कर ऊपर सुंदर टोंक बनाना आरंभ किया । लाखों रुपयों की लागत का बहुत ही भव्य और साक्षात् देवविमान के जैसा मन्दिर तैयार करवाया । इस मन्दिर की चारों और सेठ हठीभाई, दीवान अमरचन्द दमणी, मामा प्रतापमल्ल आदि प्रसिद्ध धनिकों ने अपने अपने मन्दिर बनवाये । सब मन्दिरों के इर्द गीर्द पत्थर का मजबूत किला करवाया । मन्दिरों का कार्य पूरा होने पाया था कि इतने में सेठजी का देहान्त हो गया । इस से उनके सुपुत्र सेठ खीमचन्द ने, बडा भारी संघ निकाल कर, शत्रुंजय की यात्रा के साथ इस रमणीय टोंक की संवत् १८९३ में प्रतिष्ठा करवाई । यह संघ बहुत ही बडा था । इसमें ५२ गावों के और संघ आकर मिले थे और उन सब का संघपतित्व खीमचंद सेठ को प्राप्त हुआ था ! कहा जाता है कि इस टोंक के बनाने में एक करोड से भी अधिक खर्च हुआ था ! इस में कोई १६ तो बडे बडे मन्दिर हैं और सवा सौ के करीब दहेरियां हैं। जहां ७० - ८० वर्ष पहले भयंकर गर्त अपनी भीषणता के कारण यात्रियों के दिल में भय पैदा करता था वहां पर आज देवविमान जैसे सुन्दर मन्दिरों को देख कर दर्शकों के हर्ष का पार भी नहीं रहता । सचमुच ही संसार में समर्थ मनुष्य क्या नहीं कर दिखा था ? ९ आदीश्वर भगवान् की टोंक । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयगिरि के दूसरे शिखर पर आदीश्वर भगवान की टोंक बनी हुई है । यह टोंक सबसे बडी है । इस अकेली ने ही पर्वत का सारा दूसरा शिखर रोक रक्खा है । इस तीर्थ की जो इतनी महिमा है वह इसी For Private and Personal Use Only

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