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ऐतिहासिक सार-भाग।
लिये वैसा करने की आज्ञा दें।" यह सुन कर बादशाह बोला कि " हे साह ! तुमारी जो इच्छा हो वह निःशङ्क हो कर पूर्ण करो । मैं तुमें अपना यह शासनपत्र ( फर्मान ) देता हूं जिस से कोई भी मनुष्य तुमारे कार्य में प्रतिबन्ध नहीं कर सकेगा ।'' यह कह कर बादशाह ने एक शाही फर्मान लिख दिया जिसे ले कर, अच्छे मुहूर्त में कर्मा साह ने वहां ( चांपानेर ) से शीघ्र ही प्रयाण किया । ___आकाश को शब्दमय कर देने वाले वाजिंत्रों के प्रचण्ड घोष पूर्वक साह ने शहर से निर्गमन किया । चलते समय सुवासिनी स्त्रियों ने मंगल कृत्य कर उस के सौभाग्य को बधाया । बहार निकलते समय बहुत अच्छे शकुन हुए जिन्हें देख कर कर्मा साह के आनन्द का बेग बढने लगा । रास्ते में स्थान स्थान पर सेंकडों बन्दिजनों ने साह का यशोगान किया जिस के बदले में उस ने, उन के प्रति धन की धारा वर्षाई । हाथी, घोडे और रथ पर चढे हुए अनेक संघजनों से परिवृत हो कर रथारूढ कर्मा साह क्रमशः शत्रुजय की ओर आगे बढ़ने लगा । मार्ग में स्थान स्थान पर जितने जैनचैत्य आते थे उन प्रत्येक में स्नात्र महोत्सव और ध्वजारोपण करता हुआ, जितने उपाश्रयों में जैनसाधु मिलते थे उन के दर्शन-वन्दन कर वस्त्र-पात्रादि दान देता हुआ, जितने दरिद्र लोक दृष्टिगोचर होते थे उन को यथायोग्य द्रव्य की सहायता पहुंचाता हुआ और चीडीमारमच्छीमार आदि हिंसक मनुष्यों को उन के पापकर्म से मुक्त करता हुआ शत्रुजयोद्धारक वह परम प्रभावक श्रावक स्तंभतीर्थ ( खंभात ) को पहुंचा।
स्तंभतीर्थवासी जनसमुदाय ने बडे महोत्सवपूर्वक कर्मा साह का नगर प्रवेश कराया । स्तंभनक पार्श्वनाथ और सीमन्धर तीर्थकर के
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