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एतिहासिक सार-भाग ।
न था जिसने पीछे से कर्म ( दैव ) के आगे याचना की हों-अर्थात् कर्मा साह ने कुल याचकों की इच्छा पूर्ण कर देने से फिर किसी ने अपने नसीब को नहीं याद किया ।.-..
तदनन्तर, जितने सूत्रधार कारागिर ) थे उन सब को सुवर्ण का यज्ञोपवीत, सुवर्ण मुद्रा, बाजुबन्ध कुण्डली भोसकण आदि बहुमूल्य आभरण तथा उत्तम वस्त्र दे कर सकने किये । अपने जितने साधर्मिक बन्धु थे उन का भी यथायोग्य धन,
वाहन और प्रियवचन द्वारा विनयवान् साहने पूर्ण सत्कार किया। मुमुक्षुवर्ग जितना था उसे भी वस्त्र, पात्र और पुस्तकादि धर्मोपकरण प्रदान कर अगणित धर्मलाभ प्राप्त किया । इनके सिवा आबाल-गोपाल पर्यंत के वहां के कुल मनुष्यों को भी स्मरण कर कर उस दान वीर ने अन्न और वस्त्र का दान दे दे कर सन्तुष्ट किया ।
विशालहृदय और उदारचित वाले कर्मा साह ने इस प्रकार सर्व मनुष्यों को आनन्दित और सन्तुष्ट कर अपने अपने देशमें जाने के लिये विसर्जित किये । आप थोडे से दिन तक, अवशिष्ट कार्यों की समाप्ति के लिये, वहीं ठहरा ।
निस भगवत्प्रतिमा के दर्शन करने के लिये प्रत्येक मनुष्य को सौ सौ रुपये टेक्स ( कर ) के देने पडते थे और जिस में भी केवल एक ही वार, क्षण मात्र, दर्शन कर पाते थे उसी मूर्ति के, पुण्यशाली कर्मा साह ने आपने पास से सुन्ने के ढेर के ढेर राजा को दे कर, लाखोकरोडों मनुष्यों को विना कोडी के खर्च किये, महिनों तक पूर्ण शान्ति के साथ पवित्र दर्शन कराये । सुकर्मी संघपति कर्मा साह की इस पुण्यराशी का कौन वर्णन कर सकता है ?
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