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परिशिष्ट ।
लिखितं-यथा........ ( बाकी सब ऊपर मुताबिक )........
लिखा भावसुन्दर गणि ने । ३.-श्री कमलकलशसूरिगच्छ के राजकमलसूरि के पट्टधर कल्याण
धर्मसूरि लिखितं यथा शQजय के बारे में जो ऊपर लिखा हुआ है वह हमें मान्य है। यह तीर्थ ८४ ही गच्छों का है। किसी एक का नहीं है । लिखा, कमलकलशा मुनि
भावरत्न ने। ४-देवानन्दगच्छ के हारीजशाखा के भट्टाराक श्रीमहेश्वरसूरि
लिखितं यथा ( बाकी ऊपर ही के अनुसार ) । ५-श्रीपूर्णिमापक्षे अमरसुंदरसूरि लिखितं- ( ऊपर मुताविक । ) ६-पाटडियागच्छीय श्रीब्रह्माणगच्छनायक भट्टारक बुद्धिसागर
सूरि लिखितं- ( ऊपर मुताबिक )। ७-आंचलगच्छीय यतितिलकगणि और पण्डित गुणराजगणि
लिखितं ( ऊपर मुताबिक )। ८-श्रीवृद्धतपागच्छ पक्षे श्रीविनयरत्नसूरि लिखितं । ९-आगमपक्षे श्रीधर्मरत्नसूरि की आज्ञा से उपाध्याय हर्षरत्न
ने लिखा। १०-पूर्णिमागच्छ के आचार्य श्रीललितप्रभ की आज्ञा से वाचक
वाछाक ने लिखा। यथा-शचुंजय का मूल किला, मूल मन्दिर
और मूल प्रतिमा समस्त जैनों के लिये वन्दनीय और पूजनीय है। यह तीर्थ समग्र जैन समुदाय की एकत्र मालिकी का है । जो जो जिनप्रतिमा मानते पूजते हैं उन सब का इस तीर्थ पर एक सा हक्क और अधिकार है। शुभं भवतु जैन संघस्य ।
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