Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐतिहासिक सार - भाग 1 | शाह ने अपने राज्य की लगाम हाथ में लेकर पहल पहल जितने स्वामीद्रोही, दुर्जन, और उद्धत मनुष्य थे उन सब को कडी शिक्षा दी ; किसी को मार डाला, किसी को देशनिकाल किया, किसी को कैद में डाला, किसी को पदभ्रष्ट किया और किसी को लूट लिया । उस के प्रताप के डर के मारे निरंतर अनेक राजा आ कर बडी बडी भेंटें सामने धरने लगे । पूर्वास्था में जिन जिन मनुष्यों ने उस पर उपकार या अपकार किया था उन सब को क्रमशः अपने पास बुला बुला कर यथायोग्य सत्कार या तिरस्कार कर कृतकर्म का फल पहुंचाने लगा । सुकर्मी कर्मा साह को भी, उस के किये हुए निःस्वार्थ उपकार को स्मरण कर, बड़े आदर के साथ कृतज्ञ बादशाह ने अपने पास बुलाने के लिये आह्वान भेजा । साह भी आमंत्रण आते ही भेंट के लिये अनेक बहुमूल्य चीजें लेकर उस के पास पहुंचा । बहादुरशाह ने साह के सामने आते ही ऊठ कर दोनों हाथों से बड़े प्रेम के साथ उस का आलिङ्गन किया । अपने सभामण्डल के आगे कर्मा साह की निष्कारण परोपकरिता की खूब प्रशंसा करता हुआ बोला कि - " यह मेरा परम मित्र है । जिस समय बुरी दशा ने मुझे बे तरह तङ्ग किया था तब इसी दयालु ने उस से मेरा छुटकारा करवाया था । बादशाह के मुंह से इन शब्दों को सुन कर कर्मा साह बीच ही में एकदम बोल कर उसे आगे बोलने से बन्ध किया और कहा कि " हे शाहन्शाह ! इतना बोझा मुझ पर न रक्खें, मैं इसे ऊठा सकने में समर्थ नहीं हूं । मैं तो केवल आपका एक सेवक मात्र हूं । मैं ने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है कि जिस से आप मैरी इतनी तारीफ करें। " इस तरह परस्पर मैत्रीपूर्ण मुख्य था । बहादुरखान एकदम कूच कर चांपानेर पहुंचा। वहां उसने इमादुल्मुल्क को पकड़ कर मार डाला और नासिरखान को जहर दे कर स्वयं बहादुरशाह नाम धारण कर १५२७ ई. में तख्त पर बैठा " I 1 For Private and Personal Use Only ५५

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