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शत्रुजयतीर्थोद्धारप्रबन्ध का mmmmmmmmmmm
mmmmmmmmm mmmmmmmmmm साह की शाहजादा के साथ अच्छी मैत्री हो गई। स्वप्न में गौत्रदेवी ने आकर कर्मा साह से कहा कि “ इस शाहजादा से तेरी ईष्ट सिद्धि होगी " इस लिये उस ने खान, पान, वसन और प्रिय वचन से मुसाफर शाहजादा का बहुत सत्कार किया। बहादुरखान के पास इस समय खर्ची बिलकुल खूट गई थी इस लिये कर्मा साह ने उसे एक लाख रुपये विना किसी शरत के मुफ्त में दिये । शाहजादा इस से अति आनन्दित हुआ और साह से कहने लगा कि 'हे मित्रवर ! जीवन पर्यंत मैं तुमारे इस अहसान को न भूल सकूँगा।' इस पर कर्मा साह ने कहा कि 'आप ऐसा न कहें । आप तो हमारे मालिक हैं और हम आप के सेवक हैं । केवल इतनी अर्ज है कि कभी कभी इस जन का स्मरण किया करें और जब आप को राज्य मिले तब शत्रुजय के उद्धार करने की जो मेरी एक प्रबल उत्कण्ठा है उसे पूर्ण करने दें।' शाहजादा ने साह की इच्छा पूर्ण करने देने का वचन दिया और फिर उस की अनुमति ले कर वहां से अन्यत्र गमन किया ।
इधर गुजरात में मुजफरशाह की मृत्यु हो गई और उस के तहत पर सिकन्दर बैठा । वह अच्छा नीतिवान् था परन्तु दुर्जनों ने उसे थोडे ही दिनों में मार डाला। यह वृत्तान्त जब बहादुरखान ने सुना तो वह शीघ्र गुजरात को लौटा और चापानेर पहुंचा । वहीं संवत् १५८३ के भाद्रपद मास की शुक्ल द्वितीया और गुरुवार के दिन, मध्याह्न समय में उस का राज्याभिषेक हुआ और बहादुर शाह नाम धारण किया । बहादुर
* — गुजरातनो अर्वाचीन इतिहास ' नामक पुस्तक में लिखा है कि “ सिकंदर शाह ने थोडे महिने राज्य किया इतने में इमादुल्मुल्क खुशकदम नाम के अमीर ने उसे मार डाला और उस के छोटे भाई नासिरखान को महमूद दूसरा, इस नाम से बादशाह बना कर, उस की और से स्वयं राज्य करने लगा । परन्तु दूसरे अमीर उस के विरोधी बन कर बहादुरखान जो हिन्दुस्थान से वापस आया था उस के साथ मिल गये । बहादुरखान के पक्ष के अमारों में धंधुका का मलिक ताजखान
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