Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६० शत्रुंजयतीर्थोद्धारप्रबन्ध का इस समय सौराष्ट्र का सूबा मयादखान ( गुझाहिदखान ) था । वह कर्मा साह के इस कार्य से दिल में बडा जलता था परन्तु अपने मालिक ( बहादुरशाह ) की आज्ञा होने से कुछ नहीं कर सकता था । गूर्जर वंश के रविराज और नृसिंह ने कर्मा साह को अपने कार्य में बहुत साहाय्य दिया । * स्नंभायत से विनयमण्डन पाठक भी साधु और साध्वी का बहुत सा परिवार ले कर सिद्धाचल की यात्रा के उद्देश से कुछ समय बाद वहां पर आ पहुंचे । गुरुमहाराज के आगमन से कर्मा साह को बडा आनन्द हुआ और अपने कार्य में दुगुना उत्साह हो आया । पाठकवर ने समरा आदि गोष्ठिकों को बुला कर महामात्य वस्तुपाल के लाये हुए मम्माणी खान के दो पाषाणखण्ड जो भूमिगृह में गुप्त रूप से रक्खे हुए थे, मांगे। गोष्ठिकों के दिल को खुश और वश करने के लिये कर्मा साह ने गुरु महाराज के कथन से उन को इच्छित से भी अधिक धन देकर वे - दोनों पाषाण खण्ड लिये और मूर्ति बनाने का प्रारंभ किया । अपने अन्यान्य कौटुम्बिकों के कल्याणार्थ कुछ प्रतिमायें बनवाने के लिये और भी कितने ही पाषाणखण्ड, जो पहले के पर्वत पर पडे हुए थे, लिये । सूत्रधारों ( कारीगरों ) को निर्माण कार्य में योग्य शिक्षा देने के लिये, पाठकवर्य ने, वाचक विवेकमण्डनं और पण्डित विवेकधीर नामक अपने .. दो शिष्यों को, जो वस्तुशास्त्र ( शिल्पविद्या ) के विशेषज्ञ विद्वान् थे, . निरीक्षक के स्थान पर नियुक्त किये। उन के लिये शुद्ध-निर्दोष आहार- पानी लाने का काम क्षमाधीर प्रमुख मुनियों को सौंपा । और बाकी के जितने मुनि थे वे सब संघ की शान्ति के लिये छट्ट-अट्टमादि דיי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * लावण्यसमय की प्रशस्ति में ( देखो, श्लोक २७ ) रविराज ( या रवा ) और नृसिंह- इन दोनों को मयादखान ( मुझाहिद खान ) के मंत्री (प्रधान) बतलाये हैं। डॉ० बुल्हर के कथनानुसार ये जैन थे । ( देखो, एपिग्राफिआ इन्डिका प्रथम पुस्तक. ) 1 For Private and Personal Use Only

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