Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - .www mmon ३२ उपोद्घात mmmm भारतभूमि जिन भव्य भवनों से सुशोभित थी उन की विभुताकी हमें आज कल्पना भी होनी कठिन है ! उस असुर के अधम अनुजीवियों ने शत्रुजयतीर्थ को भी अस्पृष्ट और अखण्डित नहीं रहने दिया । तीर्थपति आदिनाथ भगवान की पूज्य प्रतिमा का कण्ठच्छेद कर दिया और महाभाग मंत्री बाहड के उध्दत मन्दिर के कितने ही भागों को खण्डित कर डाला। जिनप्रभसूरि ने, जो उस समय विद्यमान थे, अपने विविधतीर्थकल्प में, इस दुर्घटना की मीति संवत् १३६९ लिखी है । इस समय अणहिल्लपुर ( पट्टन ) में, ओसवाल जाति के देशलहरा वंश में समरासाह नामक बडा समर्थ श्रावक विद्यमान था । उस का परिचय सीधा दिल्ली के बादशाह से था । जब उसे यह मालूम हुआ कि मुसलमानों ने शत्रुजय पर भी उत्पात मचाना शुरू किया है तब वह अलाउद्दीन के पास गया और उसे समझा-बुझा कर शत्रुजय को विशेष हानि से बचा लिया । बादशाह की रजा ले कर, उस साह ने गिरिराज पर, जितना नुकसान मुसलमानों ने किया था उसे फिर तैयार कर देने का काम शुरू किया । बादशाह के आधीन में मम्माण+ की संगमर्मर * ही ग्रहर्तुक्रियास्थान(१३६९)सङ्ख्ये विक्रमवत्सरे । जावडिस्थापितं बिम्बं म्लेच्छर्भग्नं कलेवंशात् ॥ इस के उत्तरार्द्ध में यह लिखा है कि मुसलमानों ने जिस बिम्ब को भग्न किया वह जावडसाह वाला था। तो, इस से यह बात जानी जाती है कि बाहड मत्री ने केवल मन्दिर ही नया बनाया था-मूर्ति नहीं । मूर्ति तो वही स्थापन की थी जो जावडसाह ने प्रतिष्ठित की थी। ___+ यह 'मम्माण' कहां पर है इस का कुछ पता नहीं लगा। पिछले जमाने में जितनी अच्छी जिनमूर्तियें बनाई जाती थी वे प्रायः मग्माण के माबुल की होती थी। जैनग्रन्थों में, आरास ( आबू के पास) और मम्माण की खानों में के संगमर्मर का बहुत उल्लेख मिलता है। For Private and Personal Use Only

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