Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ऐतिहासिक सार - भाग । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३ के वंशजो में से था * । उस का पुत्र रामदेव हुआ । रामदेव का लक्ष्मसिंह (या लक्ष्मीसिंह ) हुआ। उस का भुवनपाल और भुवनपाल का भोजराज पुत्र हुआ । भोजराज का पुत्र ठक्करसिंह, उसका खेता और उस का नरसिंह हुआ। ये सब प्रतिष्ठित नर हुए । नरसिंह का पुत्र तोला हुआ जिस की सतियों में ललामभूत ऐसी लीलू + नाम की थी । साधु तोला, महाराणा साङ्गा का परम मित्र था । महाराणा ने उसे अपना अमात्य बनाना चाहा था परन्तु उस ने आदरपूर्वक उस का निषेध कर केवल श्रेष्ठी पढ़ ही स्वीकार किया । वह बडा न्यायी, विनयी, दाता, ज्ञाता, मानी, और धनी था । सहृदय और पुरा दयालु था । यश भी उस का बडे बडे लोकों में था । बहुत ही उदारचित्त का था । याचकों को हाथी, घोडे, वस्त्र, आभूषण आदि बहुमूल्य चीजें दे दे कर कल्पवृक्ष की तरह उन का दारिद्र्य नष्ट कर देता था । जैनधर्म का पूर्ण अनुरागी था । उस पुण्यशाली तोलासाह के १ रत्न, + २ पोम, ३ दशरथ, ४ भोज और ५ कर्मा नामक पाण्डवों के जैसे ५ पराक्रमी पुत्र हुए । इन भ्राताओं में जो सब से छोटा कर्मा साह था वह गुणों में सभी से मोटा था अर्थात् वह पांचों में श्रेष्ठ और ख्यातिमान् था । उस के सौन्दर्य, धैर्य, गांभीर्य और औदार्य आदि सभी गुण प्रशंसनीय थे | $ * लावण्यसमय वाली प्रशस्ति ( पद्य ८ - ९ ) में लिखा है कि - आमराजकी स्त्रियों में, एक कोई व्यवहारीपुत्री थी । उस की कुक्षिसे जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसका गोत्र राजकोष्ठागार ( राजभाण्डागारिक ) कहलाया । सारणदेव उसी के गोत्र में हुआ । + प्रशस्त्यनुसार, इस का दूसरा नाम ' तारादे ' था । For Private and Personal Use Only + लावण्यसमय के कथनानुसार, इस ने चित्रकोट नगर में एक जैनमन्दिर बनवाया था । $ इन पांचों के परिवार का वंशवृक्ष प्रशस्त्यनुसार अन्त में दिया गया है ।

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