Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐतिहासिक सार - भाग । कुछ वर्ष बाद तोला साह अपने धर्मगुरु श्रीधर्मरत्नसूर का स्मरण करता हुआ, न्यायोपार्जित धन को पुण्य क्षेत्रों में वितीर्ण करता हुआ और सर्व प्रकार के पापों का पश्चात्तापपूर्वक प्रत्याख्यान करता हुआ स्वर्ग के सुखों का अनुभव करने के लिये इस संसार को छोड गया । पिता के विरह से सब पुत्र शोकग्रस्त हुए परन्तु संसार के अचल नियम का स्मरण कर समय के जाने पर शोकमुक्त हो कर अपने अपने व्यावहारिक कर्तव्यों का यथेष्ट पालन करने लगे । छोटा पुत्र कर्म साह कपडे का व्यापार करता था जिस में वह दिन प्रति दिन उन्नति पाता हुआ सज्जनों में अग्रेसर गिना जाने लगा । वह दैवसिक और रात्रिक- दोनों संध्यायों में निरंतर प्रतिक्रमण करता था । त्रिकाल भगवत्पूजा और पर्व के दिनों में पौषध वगैरह भी नियमित करता रहता था । धर्म और नीति के प्रभाव से थोडे ही वर्षों में उस ने क्रोडों रुपये पैदा किये । हजारों वणिक्पुत्रों को व्यवहार कार्य में लगा कर उन्हें सुखी कुटुम्ब वाले बनाये । शीलवती और रूपवती ऐसी अपनी दोनों * 1 प्रियाओं के साथ कौटुम्बिक सुखका आनन्दप्रद अनुभव करता हुआ, पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र और स्वजनादि के बीचमें साक्षात् इन्द्र की तरह वह साह शोभने लगा । निरन्तर याचकजनों को कल्पवृक्ष की समान इच्छित दान दे दे कर दुखियों के दुखों का नाश करने लगा । इस तरह सब प्रकार का पुरुषार्थ साध कर बाल्यावस्था में जिस प्रतिज्ञा का स्वीकार किया था उसके पूर्ण करने का सतत प्रयत्न करता हुआ कर्मा साह जैनधर्म और जिनदेव की सदैव सेवा - उपासना करने लगा । ४९ For Private and Personal Use Only * लावण्यसमय वाली प्रशस्ति में कर्मासाह के कुटुम्ब के कुल मनुष्यों के नाम दिये हुए हैं जिस में इन दोनों पतिव्रताओं के नाम भी सम्मिलित हैं । पहली स्त्री का नाम कपूरदेवी और दूसरी का नाम कमलादेवी था । कमलादेवी से एक पुत्र हुआ था जिस का नाम भीषजी था । पुत्र के सिवा ४ पुत्रियें भी थी। सबका नामोल्लेख वंशवृक्ष में किया गया है । ७

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