Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ ऐतिहासिक सार-भाग। mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwx समरासाह के स्थापित किये हुए बिम्ब का पीछे से म्लेच्छों (मुसलमानों) ने फिर किसी समय मस्तक खण्डित कर दिया। धर्मरत्नसूरि के पास बैठ कर तोला साह ने जिस अपने मनोरथ के सफल होने न होने का प्रश्न किया वह इसी विषय का था । तोला साह के समय तक किसी ने गिरिराज का पुनरुद्धार नहीं किया था इस लिये तीर्थपति की प्रतिमा वैसे खण्डित रूप ही में पूजी जाती थी। वस्तुपाल के गुप्त रक्खे हुए पाषाणखण्डों की बात संघ के नेताओं में पूर्वजपरंपरा से कर्णोपकर्ण चली आती थी;। और समरा साह ने तो नया ही पाषाणखण्ड मंगवा कर उसकी मूर्ति बनवाई थी, अतएव बस्तुपाल के रक्षित पाषाणखण्ड अभी तक भूमिगृह में वैसे ही प्रस्थापित होने चाहिये इस लिये उन्हें निकाल कर चतुर शिल्पियों द्वारा उन के बिम्ब बनाये जाय और वर्तमान खण्डित मूर्तियों की जगह स्थापित किये जायें तो अच्छा है। यह विचार कर तोला साह ने धर्मरत्नसूरि से अपना यह विचार सफल होगा या नहीं इस विषय का ऊपर्युक्त प्रश्न किया था । धर्मरत्नसूरि ने प्रश्न का फलाफल विचार कर तोला साह से कहा कि-' हे सज्जनशिरोमणि ! तेरे चित्त रूप क्यारे में शत्रुजय के उद्धार स्वरूप जो मनोरथ का बीज बोया गया है वह तेरे इस छोटे पुत्र से फलवाला होगा। और जिस तरह समरा साह के उद्धार में हमारे पूर्वजों-आचार्यों ने प्रतिष्ठा करने का लाभ प्राप्त किया था वैसे तेरे पुत्र-कर्मा साह-के उद्धार में हमारे शिष्य प्राप्त करेंगे । ' तोला साह सूरिजी का यह कथन सुन कर हर्ष और विषाद का एक साथ अनुभव करने लगा । हर्ष इस लिये था कि अपने पुत्र के हाथ से यह महान् कार्य सफल होगा और विषाद इस लिये कि अपना आत्मा यह महत्पुण्य उपार्जन न कर सका। कर्मा साह यद्यपि उस समय कुमारावस्था For Private and Personal Use Only

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