Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐतिहासिक सार - भाग । महाराज उसी समय एकाग्रचित्त हो कर अपने ज्योतिषशास्त्र विषयक विशेषज्ञान द्वारा उस के चिन्तिार्थ का स्वरूप और फलाफल सोचने लगे । ४५ " बात यह थी कि गुर्जर महामात्य वस्तुपाल एक समय शत्रुंजय पर स्नात्र महोत्सव कर रहे थे । उस समय वहां पर अनेक देशों के बहुत संघ आये हुए थे इस लिये मन्दिर में दर्शन और पूजन करने वाले श्रावकों की बड़ी भारी भीड लगी हुई थी । भक्तलोक भगवान् की पूजा करने के लिये एक दूसरे से आगे होना चाहते थे। अनेक मनुष्य सुवर्ण के बडे बडे कलशों में दूध और जल भर कर प्रभु की प्रतिमा ऊपर अभिषेक कर रहे थे । मनुष्यों की इस दट्टी और पूजा करने की उत्कट धून मची हुई देख कर पूजारियों ने सोचा, कि किसी की बेदरकारी या उत्सुकता के कारण कलश वगैरह का भगवत्प्रतिमा के किसी सूक्ष्म अवयव के साथ संघट्टन हो जाने से कहीं कुछ नुकशान न हो जायँ । इस लिये उन्हों ने चारों तरफ मूर्तिको पुष्पों के ढेर से ढंक दी। मंत्री वस्तुपाल ने मण्डप में बैठे बैठे यह सब देखा और सोचा कि यदि किसी कलशादि के कारण या कोई म्लेच्छों के हाथ जो ऐसी दुर्घटना हो जाय तो फिर इस महातीर्थ की क्या अवस्था हो ? भावी काल में होने वाले अमंगल की आशंका का अपने अन्तःकरण में इस प्रकार आविर्भाव हुआ देख कर दीर्घदर्शी महामात्य ने उसी समय मम्माण की संगमर्मर की खान में से, मौजुद्दीन बादशाह की आज्ञासे उत्तम प्रकार के पांच बडे बडे पाषाणखण्डों के मंगवाने का प्रबन्ध किया* | बहुत कठिनता से वे खण्ड शत्रुंजय पर पहुंचे । For Private and Personal Use Only * टिप्पणि में लिखा है कि- मोजुद्दीन बादशाह का मंत्री पुन्नड करके था जो श्रावक हो कर वस्तुपाल का प्रिय मित्र था । उसने ये पाषाण खण्ड भिजवाये थे । इन खण्डों में से एक खण्ड आदिनाथ भगवान् की मूर्ति के लिये, दूसरा पुण्डरीक गणधर की, तीसरा कपर्दी यक्ष की, चौथा चक्रेश्वरी देवी की और पांचवा तेजलपुरप्रासाद लिये पार्श्वनाथ तीर्थकर की प्रतिमा के लिये मंगवाया था ।

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