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शत्रुजयतीर्थोद्धारप्रबन्धं का mmmmmmmmmmmmmmmmmmmww. marimmmmmmmmmmmmmom
धर्मरत्नमरि और सं० धनराज का संघ मेदपाट के पवित्र तीर्थस्थलों की और प्रसिद्ध नगरों की यात्रा करता हुआ क्रमशः चित्रकोट पहुंचा । सूरिजी के साथ संघ का आगमन सुन कर महाराणा साङ्गा अपने हाथी, घोडे, सैन्य और वादित्र वगैरह ले कर उन के सन्मुख गया । सूरिजी को प्रणाम कर उन का सदुपदेश श्रवण किया । बाद में, बहुत आडम्बर के साथ संघ का प्रवेशोत्सव किया और यथायोग्य सब संघजनों को निवास करने के लिये वासस्थान दिये। तोलासाह अपने पुत्रों के साथ संघ की यथेष्ट भक्ति करता हुआ । सूरिजी की निरन्तर धर्मदेशना सुनने लगा । राजा भी सूरिजी के पास आता था और धर्मोपदेश सुने करता था । सूरिजी के उपदेश से सन्तुष्ट हो कर, राजा ने पाप के मूलभूत शिकार आदि दुर्व्यसनों का त्याग कर दिया। वहां पर एक पुरुषोतम नामका ब्रामण था जो बडा गर्विष्ठ विद्वान् और दूसरों के प्रति असहिष्णुता रखने वाला था। सूरिजी ने उस के साथ, राजसभा में सात दिन तक वाद कर उसे पराजित किया। इस बात का उल्लेख एक दूसरी प्रशस्ति में भी किया हुआ है । यथा
कीा च वादेन जितो महीयान् द्विधा द्विजो यैरिह चित्रकूटे । जितत्रिकूटे नृपतेः समक्षमहोमिरनाय तुरङ्गसंख्यैः ४॥
एक दिन अवकाश पा कर लीलू सती के पति तोलासाह ने अपने छोटे बेटे कर्मासाह के समक्ष धर्मरत्नसूरि से भक्तिपूर्वक एक प्रश्न किया कि-'हे भगवन मैं ने जो कार्य सोच रक्खा है वह सफल होगा या नहीं, यह आप विचार कर मुझसे कहने की कृपा करें ।' आचार्य
___x यह प्रशस्ति ( शिलालेख) कहां पर थी (या अभतिक है ) इस का पता नहीं। ऐसी बहुतसी प्रशस्तियों के उल्लेख कई ऐतिहासिक लेखों में मिलते हैं परन्तु वे प्रायः नष्ट हो गई हैं।
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