Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपोद्घात mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm करने के लिये भी जाने नहीं दिया जाता था । यदि कोई बहुत आजीजी करता था तो उस के पास से जी भर कर रुपये ले कर, यात्रा करने की रजा दी जाती थी। किसी के पास से ५ रुपये, किसी के पास से १० रुपये और किसी के पास से एक असरफी-इस तरह जैसी आसामी और जैसा मौका देखते वैसी ही लंबी जबान और लंबा हाथ करते थे । बेचारे यात्री बुरी तरह कोसे जाते थे । जिधर देखो उधर ही बडी अंधाधुन्धी मची हुई थी। न कोई अर्ज करता था और न कोई सुन सकता था । कई वर्षों तक ऐसी ही नादिरशाही बनी रही और जैन प्रजा मन ही मन अपने पवित्र तीर्थ की इस दुर्दशा पर आंसु बहाती रही । सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, चित्तोड की वीरभूमि में कर्मा साह नामक कर्मवीर श्रावक का अवतार हुआ जिसने अपने उदग्र वीर्य से इस तीर्थाधिराज का पुनरुद्धार किया । इसी महाभाग के महान् प्रयत्न से यह महातीर्थ मूच्छित दशा को त्याग कर फिर जागृतावस्था को धारण करने लगा और दिन प्रतिदिन अधिकाधिक उन्नत होने लगा। फिर, जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरि के समुचित सामर्थ्य ने इस की उन्नति की गति में विशेष वेग दिया जिस के कारण यह आज जगत् में '" मन्दिरों का शहर " ( THE CITY OF TEMPLES, * ) कहा जा रहा है। * बम्बई के वर्तमान गंवर्नर लॉर्ड वेलिंग्डनने गत वर्ष में काठियावाड की मुसाफरी करते समय शत्रुजय की भी यात्रा की थी। उन की इस यात्रा का मनहर वृत्तान्त 'टाईम्स ऑव इन्डिया' के तारीख १४ फेब्रुआरी ( सन् १९१६) के अंक में छपा है । इस वृत्तान्त का शीर्ष, लेखक ने The Governor's Tour, IN THE CITY OF TEMPLES. ( मन्दिरों के शहर में गवर्नर की मुसाफरी) यह किया है और लेख में शहर के सौन्दर्य का चित्राकर्षक वर्णन किया है। For Private and Personal Use Only

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