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मुख्य मन्दिर का इतिहास । ramme mmmmmmmmmm फाट-फूट हो गई थी। मंत्री पूजन कर के प्रभु-प्रार्थना करने के लिये रङ्गमण्डप में बैठा और एकाग्रता के साथ स्तवना करने लगा। इतने में मन्दिर की किसी एक फाट में से एक चूहा निकला और वह दीपक की बत्ती को मुंह में पकड कर पीछा कहीं चला गया । मंत्री ने यह देख कर सोचा, कि मन्दिर काष्ठमय हो कर बहुत जीर्ण है इस लिये यदि दीपक की बत्तीसे कभी अग्नि लग जायँ तो तीर्थ की बड़ी भारी आशातना के हो जाने का भय है । मेरी इतनी सम्पत्ति और प्रभुता किस काम की है । यह सोच कर वहीं मंत्री ने प्रतिज्ञा कर ली की इस युद्ध से वापस लौट कर मैं इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करूंगा और लकडी के स्थान में पत्थर का मजबूत मन्दिर बनाऊंगा । मंत्री वहां से चला और थोडे ही दिनों में अपने सैन्य से जा मिला । शत्रु के साथ खूब लडाई हुई। उस में मंत्री ने बड़ी वीरता दिखलाई और शत्रु का पूर्ण संहार किया। परन्तु, मंत्री को कई सख्त प्रहार लगे जिस से वह वहीं पर स्वधाम को पहुंच गया । मंत्री ने अन्तसमय में, अपने सेनानियों को कहा कि मैं अपने स्वामी का कर्तव्य बजा कर जाता हूं इस से मुझे बडा हर्ष है परन्तु शत्रुजय के उद्धार की जो मैंने प्रतिज्ञा की है वह पूरी नहीं कर सका इस कारण मुझे बडा दुःख होता है । खैर, भवितव्यता के कारण मैं अपने हाथ से यह सुकृत्य नहीं कर सका परन्तु मुझे विश्वास है कि मेरे पितावत्सल प्रिय पुत्र अवश्य ही मेरी इच्छा को पूर्ण करने में तत्पर होंगे इस लिये मेरा यह अन्तिम सन्देश उन से तुमने कह देना।' मंत्री के वचन को सेनानियों ने मस्तक पर चढाया । मंत्री का अग्निसंस्कार कर उस का विजयी सैन्य, विजय मिलने के कारण हर्षित होता हुआ परन्तु अपने प्रिय दण्डनायक की दुःखद मृत्यु के कारण दुःखी हो कर वापस राजधानी पट्टन को पहुंचा । सेनानियों ने, मंत्री के बाहड और अम्बड नामक पुत्रों को, पिता का अन्तिम सन्देश कहा । दोनों
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