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मुख्य मन्दिर का इतिहास। rammmmmmmmmmmm
मन्दिरों की श्रेणियों के मध्य में चलते चलते यात्रियों को 'हाथीपोल' नामका बडा दरवाजा मिलता है। जिस में सदैव सशस्त्र पहारेदार खडे रहते हैं । इस दरवाजे से सामने नजर करते ही वह पूज्य, पवित्र और दर्शनीय मन्दिर दृष्टिगोचर होता है जिस का चित्र इस पुस्तक के प्रारंभ में ही पाठकों ने देखा है । यही महान् मन्दिर इस तीर्थ का मुकुट-मणि है । इसी में तीर्थपति आदिनाथ भगवान् की भव्य मूर्ति विराजमान् है। इसी मन्दिर के दर्शन, वन्दन और पूजन करने के लिये, भारत के प्रत्येक कौने में से श्रद्धालु जैन उस प्राचीन काल से चले आ रहे हैं जिस का हमें ठीक ठीक ज्ञान भी नहीं है ।
मुख्य मन्दिर का इतिहास । इस तीर्थ पर, जैसा कि शत्रुजयमाहात्म्यानुसार उपर लिखा गया है, सब से पहले भरत चक्रवर्तीने अपने पिता श्रीआदिनाथ तीर्थंकर का मन्दिर बनवाया था । पीछे से उसी का उद्धार अनेक देव-मनुष्यों ने किया । ऐसे १२ उद्धारों का, जो चौथे आरे में किये गये हैं, ऊपर उल्लेख हो चुका है । शत्रुजयमाहात्म्यकार ने, भगवान् महावीर के निर्वाण बाद के भी दो उद्धारों का उल्लेख किया है जो ऊपर उल्लिखित हो चुके हैं। धर्मघोषसूरि ने अपने प्राकृत ' कल्प' में, सम्प्रति, विक्रम और शातवाहन राजा को भी इस गिरिवर का उद्धारक बताया है * परन्तु इन की सत्यता के लिये अभी तक और कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिले।
* संपइ-विकम-बाहड-हाल-पालित्त-दत्तरायाइ ।
जं उद्धरिहंति तयं सिर सत्तुंजय महातित्थं॥
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