Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजय पर्वत का आधुनिक वृत्तान्त । । कारण है । तीर्थति आदिनाथ भगवान् का ऐतिहासिक और दर्शनीय मन्दिर इसी के बीच है। बडे कोट के दरवाजे में प्रवेश करते ही एक सीधा राजमार्ग जैसा फर्शबन्ध रास्ता दृष्टिगोचर होता है जिस की दोनों और पंक्तिबद्ध सेंकडों मन्दिर अपनी विशालता, भव्यता और उच्चता के कारण दर्शकों के दिल एकदम अपनी ओर आकृष्ट करते हैं जिस से देखने वाला क्षणभर मुग्ध हो कर मन्दिरों में विराजित मूर्तियों की तरह स्थिर - स्तंभित सा हो जाता है । जिस मन्दिर पर दृष्टि डालो वही अनुपम मालूम देता है । किसी की कारीगरी, किसी की रचना, किसी की विशालता और किसी की उच्चता को देख कर यात्रियों के मुंहसे ओ हो ! ओ हो ! की ध्वनियाँ निकले करती हैं। महाराज सम्मति, महाराज कुमारपाल, महामात्य वस्तुपाल - तेजपाल, पेथडसाह, समरासाह आदि प्रसिद्ध पुरुषों के बनाये हुए महान् मन्दिर इन्हीं श्रेणियों में सुशोभित हैं । For Private and Personal Use Only २५ सर्व साधारण इन मन्दिरों को देख कर जिस तरह आनन्दित होता है वैसे प्राचीन सत्यों को ढूंढ निकालने में अति आतुर ऐसी पुरातत्ववेत्ता की आन्तर दृष्टि में आनन्द का आवेश नहीं आकर नैराश्य की निश्चलता दिखाई देती है, यह जान कर अवश्य ही खेद होता है । यद्यपि ये मन्दिर अपनी सुन्दरता के कारण सर्व श्रेष्ठ हैं तो भी इनमें की प्राचीन भारत की आदर्श भूत शिल्पकला का बहुत कुछ विकृतरूप में परिणत हो जाने के कारण भारतभक्त के दिल में आनन्द के साथ उद्वेग आ खड़ा होता है। कारण यह है कि यहां पर जितने पुराणे मन्दिर हैं उन सब का अनेक बार पुनरुद्धार - संस्कार हो गया है । उद्धार कताओं ने उद्धार करते समय, प्राचीन कारीगरी, बनावट और शिलालेखों आदि की रक्षा तरफ बिलकुल ही ध्यान न रक्खा । इस कारण, पुरातत्त्वज्ञ की दृष्टि में, इन में कौन सा भाग नया है और कौन सा पुराणा ४

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