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१.८
उपोद्घात
त्रता को पाया हुआ रमणीय पर्वत गिरनार दिखाई देता है । उत्तर की तरफ शीहोर की आसपास के पहाड, नष्टावस्था को प्राप्त हुई हुई वल्लभी के विचित्र दृश्यों का शायद ही रुन्धन करते है | आदिनाथ Į के पर्वतकी तलेटी से सटे हुए पालिताणा शहर के मिनारे, जो घनघटा के आरपार, धूप में चला करते हैं, दृष्टिगोचर होने पर दृश्य के अप्रगामी बनते हैं; और नजर जो है सो चाँदी के प्रवाह समान चमकती हुई शत्रुंजयी नदी के बांके चूंके बहते पूर्वीय प्रवाह के साथ धीरे धीरे चलती हुई तलाजे के, सुंदर देवमंदिरों से शोभित पर्वत पर, थोडी सी देर तक जा ठहरती है, और वहां से परलीपार जहां प्राचीन गोपनाथ और मधुमती को, ऊछलते समुद्र की लीला करती हुई लहरें आ आकर टकराती हैं, वहां तक पहुंच जाती है ।
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पर्वत पर की सभी टोंकों के इर्द गिर्द एक बडा मजबूत पत्थरका कोट बना हुआ है । कोट में गोली चलाने योग्य भवांरियाँ भी बनी हुई हैं । इस कोट के कारण पर्वत एक किले ही का रूप धारण किये हुए है। टोंकों में प्रवेश करने के लिये आखे कोट में केवल दो ही बडे दर्वाजे बने हुए हैं । " कोटके भीतर प्रवेश कीजिए कि एक चौक के बाद दूसरा चौक और दूसरे के बाद तीसरा इसी तरह एक मन्दिर के बाद दूसरा मन्दिर और दूसरे के बाद तीसरा; ― चौक और मन्दिर मिलते चले जायँगे । मन्दिरो की कारीगरी, उन की बनावट, 1 उनमें लगा हुआ पत्थर और उन के भीतर की सजावट का सैंकडों प्रकार का सामान आदि सब ही चीजें बहुमूल्य हैं । प्रतिमाओं की तो कुछ गिनती ही नहीं हैं । एक श्रद्धालु भक्त की जिधर को नजर जाती है, उधर ही उसे मुक्तात्माओं के प्रतिबिम्ब दिखलाई देते हैं । कुछ समय के लिये तो मानो वह आपको मुक्तिनगरी का एक पथिक समझने लगता है । "
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