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उपोद्घात
बड़े जोर जोर से चिल्लाकर कहता है कि - " आदीश्वर भगवान के इतने करोड पुत्र सिद्धपदको प्राप्त हुए हैं, " और देवी को कुछ चढाते जाने के लिये सब को सचेत करता रहता है। भोले लोग समझते हैं कि हिंगलाज की पूजा करने से पर्वत के चढने में कष्ट नहीं होता है ! यहां से चढाई बिलकुल खडी और ठाँठी होनेके कारण कुछ कठिन है ।
" आगे सबसे अन्तिम टेकरीपर हनुमान की देहरी मिलती है । इस में सिन्दूरलिप्त वानराकार हनुमानकी मूर्ति विराजमान है । इसी प्रकार की गणेश, भवानी आदि हिन्दू देव - देवियों की मूर्तियाँ और भी कई जगह स्थापित हैं । इन की स्थापना पर्वत के ब्राह्मण पुजारियों या सिपाहियों ने की होगी ।
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यहाँ से आगे दो रास्ते निकले हैं । ( एक सीधा बडी टोंक को जाता है और दूसरा सब टोंकों में हो कर वहां जाता है । ) दाहनी ओर के रास्ते से पहले कोट के भीतर जाना होता है । यहां एक झाड के नीचे एक मुसलमान पीर की कब्र बनी हुई हैं । इस के विषय में एक दन्तकथा प्रचलित है कि- अंगारशा नाम का एक करामाती फकीर था । वह जब जीता था तब पाँच भूतों को अपने काबू में रख सकता था । उस ने एक बार गर्वित हो कर आदिनाथ भगवानकी प्रतिमापर कुछ उत्पात मचाया, इस से किसी ने उसे मार डाला । मर कर वह पिशाच हुआ । और मंदिर के पूजारियों को तरह तरह की तकलीफें देने लगा और आखिर इस शर्तपर शान्त हुआ कि इस स्थानपर मेरी हड्डियां गड़ाइ जायँ । लाचार हो कर लोगों ने वहां उस की कब्र बनादी । कर्नल टॉड साहब को इस प्रवाद पर विश्वास नहीं है । वे कहते हैं कि हिन्दू लोग इस प्रकार की दन्तकथायें गढ लेने में बडे ही सिद्धहस्त हैं । यदि कभी किसी मौके पर उन के धर्म का अपमान हो और वे अपने प्रतिपक्षीसे टक्कर न ले सकें तो वे उस अपमान को दूर करने के लिये
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