Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपोद्घात MARA आधुनिक वृत्तान्त। शत्रुजय पर्वतका प्राचीन परिचय करा कर अब हम पाठकों को इस के ऊपर ले चलते हैं और वर्तमान समय में जो कुछ विद्यमान हैं उस का कुछ थोडा सा अभिज्ञान कराते हैं । पालीताणा शहर में से जो सडक शत्रुजयकी और जाती है वह पहाड के मूल तक पहुंचती है । इस स्थान को 'भाथा तलेटी' कहते हैं। यहां पर एक दो मकान बने हुए हैं जिन में जो यात्री पर्वत की यात्रा कर वापस लौटता है उसे विश्रान्ति लेने के लिये अच्छा आश्रय मिलता है । प्रत्येक यात्री को लगभग पावभर का एक मोतीचूर का लड्डू और थोडे से बेसन के सेव खाने के लिये दिये जाते हैं । इन को खा कर और ऊपर ठंडा जल पी कर थके हुए यात्री बहुत कुछ आश्वासन पाते हैं। इस को गुजराती बोली में 'माथा' कहते हैं। इसी के नाम पर यह स्थान 'भाथातलेटी' कहा जाता है। जो त्यागी ठंडा(कच्चा) पानी नहीं पीते उन के लिये पानी गर्म कर के ठारा हुआ भी तैयार रहता है। इक्के, गाडी, घोडे, आदि वाहन यहीं तक चल सकते हैं। यहां से पहाड का चढाव शुरू होता है। चढते समय दाहनी तरफ बाबू का विशाल मंदिर मिलता है । यह मंदिर बंगाल के मुर्शिदाबाद वाले सुप्रसिद्ध रायबहादुर बाबू धनपतिसिंह और लक्ष्मीपतिसिंह ने अपनी माता महताबकुंअर के स्मरणार्थ बनाया है। संवत् १९५० में, अपने बडे रिसाले के साथ आकर बाबूजी ने बडी धामधूमसे इस की प्रतिष्ठा कराई है। इस मंदिर में बाबूजी ने बहुत धन खर्च किया है । मंदिर बडा सुशोभित और खूब सजा हुआ है। उक्त बाबूजी ने अनेक धर्मकृत्य किये हैं और उन में लाखों रुपये बड़ी उदारता के साथ व्यय For Private and Personal Use Only

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