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उपोद्घात
जितनी आज है । उस समय बडी बडी काठिनाइयें रास्ते में भुगतनी पडती थी, कई दफे लुटेरों और डाकूओं द्वारा जान-माल तक भी लूटा जाता था, राजकीय विपत्तियों में बेतरह फंस जाना पडता था, तो भी नतिवर्ष लाखों लोग इस महातीर्थ की यात्रा करने के लिये अवश्य आया जाया करते थे। उस जमाने में, वर्तमान समय की तरह छूटे छूटे मनुष्यों का आना बडा ही कठिन और कष्टजन्य था इस लिये सेंकडों - हजारों मनुष्यों का समुदाय एकत्र हो कर और शक्य उतना सब प्रकार का बन्दोबस्त कर के आते जाते थे । इस प्रकार के यात्रियों के समुदाय का ' संघ ' के नाम से व्यवहार होता था । उस पिछले जमाने में प्रायः जितने अच्छे धनिक और वैभवशाली श्रावक होते थे वे अपने जीवन में, संपत्ति अनुसार धन खर्च कर, अपनी ओर से ऐसे एक दो या उस से भी अधिक बार संघ निकालते थे और साधारण अवस्था वाले हजारों श्रावकों को अपने द्रव्य से इस गिरिराज की यात्रा कराते थे । गूर्जरमहामात्य वस्तुपाल - तेजपाल जैसोंने लाखों-लाखों क्यों करोडों रुपये खर्च कर कई वार संघ निकाले थे । उन पुराणे दानवीरों की बात जाने दीजिए । गत १९ वीं शताब्दी के अंत में तथा इस २० वीं के प्रारंभ में भी ऐसे कितने ही भाग्यशालियों ने संघ निकाले थे जिन में लाखों रुपये व्यय किये गये थे । संवत् १८९५ में, जेसलमेर के * पटवों ने जो संघ निकाला था उस में कोई १३ लाख रुपये खर्च हुए थे । अहमदाबाद की हरकुंअर शेठाणी के संघ में भी कई लाख लगे थे ।
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शत्रुंजय - माहात्म्य में संघ निकाल कर इस गिरीश्वर की यात्रा करने — कराने में बड़ा पुण्य उत्पन्न होना लिखा है और जो संघपति
* इस संघ का संपूर्ण वृत्तान्त जानने के लिये देखो “ पटवों के संघ का इतिहास " नामक मेरी पुस्तक ।
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