Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० उपोद्घात के मध्य में आदिनाथ भगवान् का चतुर्मुख प्रासाद (मन्दिर) है। यह प्रासाद क्या है मानो एक बड़ा भारी गढ है । इस की लम्बाई ६३ फुट और चौडाइ ५७ फुट है । इस का गुम्बज ९६ फुट ऊँचा है । मन्दिर के पूर्व मण्डप है, जिस के पश्चिम ३१ फुट लम्बा और इतना ही चौडा एक कमरा है । इस कमरे के दोनों बगलों में चबूतरे पर एक एक द्वार बना हुआ है । मध्यमें १२ स्तंभ लगे हैं। इस की छत गौल-गुम्बजदार है । कमरे में हो कर गर्भागार में, जो २३ फूट लम्बा और उतनाही चौडा है, जाया जाता है । इस में मूर्ति के सिंहासन के कोनों के पास ४ विचित्र खम्भे लगे हैं। फर्श से ५६ फुट ऊँचा मूर्तिके बैठने का स्थान है। चारों ओर ४ बडे बडे द्वार हैं। गर्भागार की दिवार जिस पर मूर्तियें विराजमान है, बहुत ही मोटी है । उस में अनेक छोटी छोटी कोठरियां बनी हुई हैं । फर्श में नील, श्वेत तथा भूरे रंग के सुन्दर संगमर्मर के टूकडे जडे हुए हैं। गर्भागार में २ फुट ऊंचा, १२ फुट लम्बा और उतना ही चौडा श्वेत संगमर्मर का सिंहासन बना हुआ है। सिंहासन पर श्वेत ही संगमर्मर की बनी हुई १० फुट ऊँची आदिनाथ भगवान् की ४ मनोहर मूर्तियें पद्मासनासीन हैं। गर्भागार में के चारों ओर के द्वारों में से प्रतिद्वार की ओर एक एक मूर्तिका मुख है इस लिये यह मन्दिर ' चौमुखवसही ' के नाम से प्रसिद्ध है । यह मन्दिर, एक तो पर्वत के ऊंचे भाग पर होने से और दूसरा स्वयं बहुत ऊँचा होने से, आकाश के स्वच्छ होने पर २५-३० कोस की दूरी पर से दर्शकों को दिखलाई देता है । इस टोंक को अहमदाबाद के सेठ सोमजी सवाई ने संवत् १६७५ में बनाया है । ' मीराते-अहमदी' में लिखा है कि इस मन्दिर के बनवाने में ५८ लाख रुपये लगे थे ! लोग कहते हैं कि केवल ८४००० रुपयों की तो रस्सियां ही इस में काम में आई थीं !! For Private and Personal Use Only

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