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उपोद्घातं
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३-सीमन्धर तीर्थकर के उपदेश से ईशानेन्द्र का उद्धार । ४-माहेन्द्र नामक देवेन्द्र का उद्धार । ५–पाँचवे इन्द्र का उद्धार । ६-चमरेन्द्र का उद्धार । ७-अजितनाथ तीर्थंकर के वारे में सगर चक्रवर्ती का उद्धार । ८-व्यन्तरेन्द्र का उद्धार । ९-चन्द्रप्रभु तीर्थंकर के समय में चन्द्रयशा नृप का उद्धार । १०-शान्तिनाथ तीर्थंकर के पुत्र चक्रायुद्ध का उद्धार । ११-मुनिसुव्रतस्वामी के शासन में रामचन्द्र का उद्धार । १२-नेमिनाथ तीर्थंकर की विद्यमानता में पाण्डवों का उद्धार ।
ऐतिहासिक-युग के उद्धारों में जावड-शाह का उद्धार मुख्यतया इस माहात्म्य में वर्णित है । सर अलेक्झान्डर किन्लॉक फॉर्बस (Hon'ble Alexander Kinloch Forbes ' साहबने अपनी 'रासमाला' नामक गुजरात के इतिहास की सुप्रसिद्ध पुस्तक में भी इस उद्धार का वर्णन उध्दृत किया है जो यहां पर दिया जाता है।
" जिस समय सुप्रसिद्ध नृपति विक्रमादित्य इस भारत-भूमि को ऋणमुक्त कर रहे थे उस समय भावड नामक एक दरिद्र-श्रावक भावल नामक अपनी भार्या सहित काम्पिल्यपुर नामक स्थान में रहता था । एक समय दो जैनमुनि उस के घर भिक्षार्थ आए । भावल ने उन्हें शुद्ध और निर्दोष आहार का भावपूर्वक दान दिया और बाद में अपनी दरिद्रावस्था के विषय में कुछ प्रश्न किया । मुनिने कहाः-एक उत्तम जाति की घोडी तुमारे घर पर बिकने आयगी उसे तुमने ले लेना । उस घोडी के कारण तुमारी दरिद्रता नष्ट हो जायगी । यह कह कर मुनि अपने स्थान पर
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