Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुजय पर्वत का परिचय । देख कर संघपति और संघ बडा खिन्न हुआ । जावड ने पहले सब जगह साफ करवाई । शत्रुजयी नदी के जल से सर्वत्र प्रक्षालन करवाया । मन्दिरों का स्मारक काम बनवा कर तक्षशिला से लाई हुई प्रतिमा की स्थापना की । उस कार्य में असुरों ने बहुत कुछ विघ्न डाले परंतु श्रीवज्रस्वामी ने अपने दैवी सामर्थ्य से उन सब का निवारण किया । प्रतिष्ठादिक कार्यों में जावड ने अगणित धन खर्च किया। मन्दिर के शिखरपर ध्वजारोपण करने के लिये जावड स्वयं अपनी स्त्री सहित शिखर पर चढा । ध्वजारोपण किये बाद सर्व कार्यों की पूर्णाहूति हुई समझ कर और अपने हाथों से इस महान् तीर्थ का उद्धार हुआ देख कर दोनों (दम्पति) के हर्ष का पार नहीं रहा। वे आनन्दावेश में आ कर वहीं पर नाचने लगे जिससे शिखर पर से नीचे गिर पडे । मर्मांतक आघात लगने के कारण, तत्काल शरीर त्याग कर उन का उन्नत आत्मा स्वर्ग की ओर प्रस्थित हो गया । जावड के पुत्र जाजनाग और संघ ने इस विपत्ति का बडा दुःख मनाया । परन्तु आचार्य महाराज के उपदेश से सब शान्तचित्त हुए । जावड ने इस तीर्थ की रक्षाके लिये और भी अनेक प्रबन्ध करने चाहे थे परंतु भवितव्यता के आगे वे विफल गये । इस कारण आज भी जो कार्य पूर्णता को नहीं पहुंचता उस के विषय में ' यह तो जावड भावड कार्य है ! ' ऐसी लोकोक्ती इस देशमें (गुजरात और काठियावाड में ) प्रचलित है।" जावड शाह के इस उद्धार की मीति विक्रम संवत् १०८ दी गई है । इस उद्धार के बाद के एक और उद्धार का भी इस माहात्म्य में उलेख है। यह संवत् ४७७ में हुआ था। इस का कर्ता वल्लभी का राजा शिलादित्य था। जावड शाह के उद्धार बाद सौराष्ट्र और लाट आदि देशो में बौद्धधर्म का विशेष जोर बढने लगा । परवादियों के लिये दुर्जय ऐसे बौद्धाचार्यों ने इन देशों के राजओं को अपने मतानुयायी For Private and Personal Use Only

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