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शत्रुजय पर्वत का परिचय ।
चले गये। भावल ने अपने पति भावड से मुनियों का कथन कह सुनाया। थोडे ही दिन में एक घोडी उस के घर पर आइ जिसे उसने खरीद लिया । उस की उस ने अच्छी संभाल रक्खी। कुछ समय बाद उस ने एक उत्तम लक्षण वाले घोडे को जन्म दिया । योग्य उम्र में आ जाने पर, एक राजा के पास उसे बेच दिया । राजाने उस के मूल्य में ३ लाख रुपये दिये । इन रुपयों द्वारा भावड ने बहुत से. अच्छे अच्छे घोडे खरीद किये और उन्हें अच्छी तरह तैयार कर महाराज विक्रमादित्य के पास ले गया। राजा ने उन घोडों को ले कर उस के बदले में मधुवती (हाल में जिसे महुवा-बंदर कहते हैं और जो शत्रुजय से दक्षिण की ओर २०-२५ मील दूर पर है ) गाँव भावड को इनाम में दिया । वहां पर भावड के एक पुत्र हुआ जिस का नाम जावड रक्खा गया । कुछ समय बाद भावड मर गया और जावड अपने पिताकी संपत्ति का मालिक बना । एक समय, म्लेच्छ लोगों का बड़ा भारी हमला समुद्र द्वारा आया और सौराष्ट्र, लाट कच्छ वगैरह देशों को खूब लूटा । इन देशों की बहुत सी संपत्ति के साथ कितने ही बाल बच्चों तथा स्त्री-पुरुषों को भी पकड कर वे अपने देश में ले गये । दुर्भाग्य वश जावड भी उन्हीं में पकड़ा गया । जावड बडा बुद्धिशाली
और चतुर व्यापारी था इस लिये वह अपने कौशल से उन म्लेच्छों को प्रसन्न कर वहीं स्वतंत्र रूपसे रहने लगा और व्यापार चलाने लगा । व्यापार में उसे थोडे ही समय में बहुत द्रव्य प्राप्त हो गया । वह उस म्लेच्छ-भूमि में भी अपने स्वदेश की ही समान जैनधर्म का पालन करने लगा। वहां पर एक सुंदर जैनमंदिर भी उस ने बनाया । जो कोई अपने देश का मनुष्य वहां पर चला आता था उसे जावड सर्वप्रकार की सहायता देता था । इस से बहुत सा जैनसमुदाय वहां पर एकत्र हो गया था । किसी समय कोई जैन मुनि उस नगर में
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