________________
पोठिका
भरिल्ल छन्द । द्वादशांगको सार जु सुपरविचार है।
सो संजमजुत गहत होत भवपार है ॥ तास हेत यह शासन परम उदार है ।
यातें प्रवचनसार नामनिरधार है ॥ ६८ ॥
मूलगन्थकर्ता श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यकी स्तुति ।
अशोकपुष्पमंजरी। जासके मुखारविंदतें प्रकाश भास वृन्द ।
_स्यादवाद जैन वैन इन्दु कुन्दकुन्दसे ॥ तासके अभ्यासतें विकास भेदज्ञान होत ।
मूढ सो लखै नहीं कुबुद्धि कुन्दकुन्दसे ॥ देत ई अशीस शीस नाय इन्द्र चन्द्र जाहि ।
मोह-मार-खंड मारतंड कुन्दकुन्दसे ॥ शुद्धबुद्धिवृद्धिदा प्रसिद्ध रिद्धिसिद्धिदा ।
हुए, न हैं, न होहिंगे, मुनिंद कुंदकुंदसे ॥ ६९ ॥
इति भूमिका ।