Book Title: Pramey Ratnamala Vachanika
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 16
________________ पत्र. खंडन । द्वितीय समुद्देश २ तृतीय समुद्देश. पत्र. प्रमाणके प्रत्यक्ष और परोक्ष दो। ३४ परोक्षका लक्षण और उसके भेद । ८५ भेदका वर्णन तथा अन्य वादियों सोदाहरण स्मृतिका लक्षण, ८६ कर मानी गई जो प्रमाण आकारनिर्देशपूर्वक प्रत्यभिज्ञान संख्या है उसमें समस्त का लक्षण। प्रमाणके भेदोंका अंतर्भाव अन्यवादिकृत उपमान प्रमानहीं होता ऐसा वर्णन। णका खंडन। क्रमपूर्वक सब संख्या वादि प्रत्यभिज्ञानके उदाहरण योंका मत प्रदर्शन पूर्वक आकारसहित तक प्रमाणका लक्षण तथा उदाहरण ।। प्रत्यक्षका लक्षण । अनुमानका लक्षण, हेतुका लक्षण तथा अन्यवादिमुख्य तथा सांव्यवहारिकरूप ४८ स्वीकृत हेतु लक्षणका परिहार। प्रत्यक्षके भेद और सांव्यव अविनाभावका लक्षण तथा हारिकका स्वरूप और भेद। सहभावका लक्षण। नैयायिक परिकल्पित अर्थ क्रमभावका लक्षण, अविना- ९५ और आलोककी कारणताका भावका तर्कसे निर्णय होता है खंडन। ऐसाकथन तथा साध्यका लक्षण । बोद्ध द्वारा माने गये जो अर्थ धर्मी (पक्ष) का लक्षण। विषयक ताद्रूप और तदुत्पत्ति धर्मी प्रसिद्ध होता है ऐसा ९९ ज्ञानकारण हैं उनके इस मत कथन और उसके भेदका वर्णन का खंडन और स्वमतविष पक्षके वचनकी आवश्यकता। १०३ यक कारणताका प्रतिपादन । पक्ष और हेतु ये दोही मुख्य प्रत्यक्षका लक्षण तथा ५६ अनुमानके अंग हैं उदाहरण उसमें आवरण सहितत्व और नहीं इत्यादि समर्थन । करणजन्यत्वका निषेध। | बालव्युत्पत्तिके निमित्त शास्त्रमें ११० मुख्य प्रत्यक्ष तथा सर्वज्ञ विष- ही उदाहरणादिका उपयोग यक अन्यवादि स्वीकृत अन्यथा है इत्यादि। मतोंका परिहार और अपने दृष्टान्तके भेद और अन्वय- १११ मतका स्थापन। । व्यतिरेक दृष्टान्तका लक्षण । १०६

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