Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
१.५९] मात्रावृत्तम्
[३१ ५८. जिस गाथा में २७ हार (गुरु) (अर्थात् ५४ मात्रा गुरु की) तथा तीन रेखाएं (लघु) हों (इस तरह ५४+३=५७ मात्रा हों), वह प्रशंसनीय है तथा गाथाओं में प्रथम गाथा है। इसमें तीस अक्षर होते हैं तथा यह '
टिप्पणी-जस्संमि < यस्यां । पिशेल ने स्त्रीलिंग 'यत्' शब्द के अधिकरण ए० व० के इस रूप का संकेत प्रा०पैं. से ही. १ ४२७ पृ. ३०३ पर किया है। इसका समानांतर रूप केवल अर्धमा० 'जस्संमि' है, जो विवाहप० २६४ में मिलता है। पिशेल ने प्रा० पैं. की ठीक इसी गाथा से इस रूप का संकेत किया है।
तिण्णि < त्रीणि रेहाई < रेखाः दे० मत्ताई ५७ । गाहाणं - गाथानां (गाहा+णं सम्प्रदान-संबंध कारक ब० व० प्राकृत चिह्न)
तीसक्खरा (तीस+अक्खर; ध्यान दीजिये प्राकृत अप० में स्वरसंधि में जहाँ परवर्ती अ के बाद या तो संयुक्ताक्षर हो, या वह स्वयं सानुनासिक हो; वहाँ पुरोवर्ती 'अ' के साथ मिलने पर भी वह 'अ' ही बना रहता है, 'आ' नहीं होता। भाषावैज्ञानिक शैली में हम यह कह सकते हैं इनमें से एक 'अ' का लोप हो जाता है। इसे हम ऐसे व्यक्त कर सकते
(१) अ+अं अं, (२) अ+अ =अs (हमने 5 चिह्न का प्रयोग इसके लिए किया है कि परवर्ती अक्षर संयुक्ताक्षर है)।
तीसक्खराहिँ लच्छी सव्वे वंदंति होइ विक्खाआ ।
हासइ एक्कं एक्कं वण्णं ता कुणह णामाई ॥५९॥ (गाहा) ५९. तीस अक्षरों वाली लक्ष्मी (गाथा) है, इसे सब पूजते हैं, यह (छंदो में) प्रसिद्ध है। इसमें से जब एक एक गुरु के स्थान पर दो दो लघु होते हैं जब एक एक वर्ण (गुरु) का ह्रास होता है, तो (गाथा के) (२७) नाम करने चाहिए।
भाव यह है, गाथा के २७ भेद होते हैं, इनमें प्रथम भेद लक्ष्मी में २७ गुरु तथा ३ लघु होते हैं। अन्य भेदों में क्रम से एक एक गुरु कम करने से अन्य २६ भेद होंगे । जैसे दूसरे भेद ऋद्धि में २६ गुरु तथा ५ लघु होंगे, तीसरे भेद बुद्धि में २५ गुरु तथा ७ लघु होंगे । इसी क्रम से सत्ताईसवें भेद में १ गुरु ५५ लघु होंगे। टिप्पणी-हासइ । हसति ।
लच्छी रिद्धी बुद्धी लज्जा विज्जा खमा अ देहीआ । गोरी धाई चुण्णा छाआ कंती महामाई ॥६०॥ (लच्छी) कित्ती सिद्धी माणी रामा गाहिणी विसा अ वासीआ ।
सोहा हरिणी चक्की सारसि कुररी सिही अ हंसीआ ॥६१॥ (उग्गाहा) ६०-६१, गाथा के सत्ताईस भेदों के नाम
लक्ष्मी, ऋद्धि, बुद्धि, लज्जा, विद्या, क्षमा, देवी, गौरी, धात्री, चूर्णा, छाया, कांति, महामाया, कीर्ति, सिद्धि, मानिनी, रामा, गाहिनी, विश्वा, वासिता, शोभा, हरिणी, चक्री, सारसी, कुररी, सिंही, हंसिका ।
टिप्पणी-लच्छी < लक्ष्मी (क्ष्म < च्छ प्रा० प्र० ३-३९) । रिद्धी < ऋद्धिः (पिशेल ६ ५७) देही < देवी. यहाँ 'देई' में 'प्राणध्वनि' (ह) का आगम पाया जाता है। धाई < धातृ, माई < मातृ । ५९. तीसक्खराहिँ-A तीसक्षराहि, C. तीसखराहि (=तीसख्खराहि); D. तीसष्षराहि, ०. तीसक्खराहि । लच्छी-0. लछी सव्वेA. सेव्वे । वंदंति A. B. वदंति । विक्खाआ-A. C. विख्खाआ, D. विष्षाआ । एक्कं एक-D. एक एकं । वण्णं-K. बंक, णामाई-C. णामाई, D. णामाई, ०. णामाइ । ६०. लच्छी-C. प्रतौ न प्राप्यते, अपि तु आदौ 'जहा' इति पदं वर्तते, A. लक्ष्मी। रिद्धी A. B. C. D.O. ऋद्धी । खमा अ-C. खमआ। धाई-A.C.O. राई । छाआ-C. दाया । कंती-C. कित्ति, D कंति । महामाई-A.C. महामाईआ । D. महामाई। ६०-C. ६३ । ६१. कित्ती-B. कित्ति, C. कित्ता, D. कीत्ति । माणी-B. माणिणी, C. पाणी. D. माणिणि। गाहिणी-A.C. गाहिणी D. गाहेणि। विसा अ-D. विस्स, A. वीसा. B. विण्णा, 0. विसाअ । सारसिC. सारसी । सिही अ-C. सीहा, D. प्रतौ न प्राप्यते (तत्र 'कूररी अ हंसीआ' इति पाठः) 0. सीही । ६१-C. ६४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org