Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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कृति का मुख्य विषय है। सिरिवालचरिउ की एक हस्तलिखित प्रति 1512 वि. की लिखित मिलती है। अतः नरसेन विक्रम की पन्द्रहवीं शती के पीछे नहीं हो सकते | 22 णायकुमारचरित :
माणिक्कराज ने 'जायकुमार चरिउ' तथा 'अमरसेन चरिठ' की रचना की। 'णायकुमारचरिङ ' में नौं सन्धियाँ हैं और पुष्पदन्त की कृति के समान कथा है, कोई परिवर्तन नहीं है। 'अमरसेन चरिउ' में सात सन्धियाँ हैं। 'णायकुमारचरिउ की रचना सम्वत् 1579 वि. में हुई 23
हरिसेण चरिउ
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किसी अज्ञात कवि द्वारा रचित हरिणचरिउ 4 सन्धियों में लिखा गया है। इसमें हरिषेण चक्रवर्ती की कथा निबद्ध है। इसकी हस्तलिखित प्रति सं. 1583 की हैं, अतः कृति का रचनाकाल इससे पूर्व होना चाहिए 24
मयंगलेहाचरिउ :
भगवतीदास ने वि. सं. 1700 में 'मृगांक लेखा चरित' की रचना की। ये अग्रवाल दिगम्बर जैन थे और दिल्ली के भट्टारक महेन्द्रसेन के शिष्य थे। ग्रन्थ में किन्तु केवल 4 सन्धियाँ हैं। इसकी रचना धत्ता कड़वक शैली में की गई है, बीच-बीच में दोहा, सोरठा तथा गाथा छन्द भी मिल जाते हैं। 25
उपर्युक्त काव्यों के अतिरिक्त अमरकीर्तिगणिकृत गेमिणाहचरिठ, सुलोयणाचरिउ तथा जसहरचरिउ, देवदत्त कृत पासणाहचरिङ, तेजपाल कृत समभवणाहचरिउ तथा वरागंचरिउ, मुनि पूर्णद्र विरचित सुकुमालचरिट, सागरदत्त सूरि विरचित जंबुसामिचरिउ, शुभकीर्ति कृत संतिणाहचरिउ, असवाल कृत पासणाहचरिउ, अभयगणिकृत सुभद्दाचरिङ, जिनप्रभसूरितकृत वज्रनाभिचरिंड, तेजपाल कृत पास चरिउ, श्रीधर कृत वड्ढमाणचरिउ तथा सुकुमालचरिउ एवं कवि ठाकुर कृत संतिणाहचरित्र प्रमुख अपभ्रंश चरित नामान्त कृतियाँ हैं।
22 रामसिंह तोमर : प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य तथा उनका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव, पृ.
161-162
23 राम सिंह तोमर : प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य तथा उनका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव, पृ.
163 165
24 वहीं पू. 165-166
25 हरिवंश कोछड़ : अपभ्रंश साहित्य पृ. 244
Xxiii
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