Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
प्रथमाध्यायस्य प्रथमः पादः यहां यह नियम किया जाता है कि व्याकरणशास्त्र में अनियत सम्बन्धवाली षष्ठी विभक्ति का स्थाने' शब्द का योग करके अर्थ किया जाये।
(३) स्थाने योगो यस्याः सा स्थानेयोगा। यहां व्यधिकरण बहुव्रीहि समास है; समानाधिकरण नहीं। पाणिनिमुनि के इसी वचन से यहां निपातन से सप्तमी विभक्ति का अलुक माना जाता है। सदृशतम आदेश:
(३) स्थानेऽन्तरतमः ।४६ । प०वि०-स्थाने ७१ अन्तरतम: १।१ । अनु०-'षष्ठी' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-षष्ठीस्थानेऽन्तरतम: (आदेश:)।
अर्थ:-षष्ठीनिर्दिष्टस्य स्थाने प्राप्यमाणानाम् आदेशानां अन्तरतमः । सदृशतम आदेशो भवति। तच्च सादृश्यं स्थान-अर्थ-गुण-प्रमाणभेदतश्चतुर्विधं भवति।
उदा०-(स्थानत:) दण्डाग्रम् । खट्वाग्रम्। (अर्थत:) वतण्डी चासौ युवतिश्चेति वातण्ड्ययुवति: । (गुणत:) पाक: । त्याग: राग: । (प्रमाणत:) अमुष्मै। अमूभ्याम्।
आर्यभाषा-अर्थ-(षष्ठी) षष्ठी विभक्ति से निर्दिष्ट के (स्थाने) स्थाने में प्राप्त होनेवाले आदेशों में से (अन्तरतमः) सदृशतम आदेश ही किया जाता है। किसी के स्थान में आदेश करते समय स्थान, अर्थ, गुण और प्रमाण भेद से चार प्रकार का आन्तर्य (सादृश्य) देखा जाता है।
उदा०-(स्थान) दण्डानम्। दण्ड का अग्रभाग। खट्वाग्रम् । खाट का अग्रभाग। (अर्थ) वतण्डी चासौ युवतिश्चेति वातड्ययुवतिः । वतण्डी युवति (गुण) पाक: । पकाना। त्यागः । छोड़ना। रागः। रंगना। (प्रमाण) अमुष्मै। उसके लिये। अमूभ्याम् । उन दोनों के द्वारा।
सिद्धि-(१) स्थान । दण्ड+अग्रम् । दण्डाग्रम् । यहां 'अक: सवर्णे दीर्घः' (६।१।१०१) से दो अकारों के स्थान में एक कण्ठ्य आकार ही दीर्घ होता है। ऐसे ही खट्वा+अग्रम्। खट्वाग्रम्।
(२) अर्थ। वतण्डी चासौ युवतिश्चेति वातण्ड्ययुवतिः। यहां वतण्ड शब्द से स्त्री-अपत्य अर्थ में वतण्डाच्च (४।१।१०८) से यञ्' प्रत्यय, उसका स्त्रियाम् (४।१३) से लुक, शाङ्गर्वायत्रो डीन् (४।११७३) से डीन्' प्रत्यय, 'यस्येति च
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org