Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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द्वितीयाध्यायस्य प्रथमः पादः
३२१ उदा०-(कर्ता) श्वभिलेह्य इति श्वलेह्य: कूपः । इस कुएं को कुत्ते चाटते हैं। यहां कुएं की बढ़ाचढ़ाकर निन्दा की गई है। काकैः पेया इति काकपेया नदी। इस नदी में कौवे पानी पीते हैं। यहां नदी की बढ़ाचढ़ाकर निन्दा की गई है। (करण) वाष्पेण छेद्यानि इति वाष्पछेद्यानि तणानि । ये तिनके इतने कोमल हैं कि भाप से कट सकते हैं। यहां तिनकों की कोमलता की बढ़ाचढ़ाकर स्तुति की गई है।
सिद्धि-(१) श्वलेह्यः । श्वन्+भिस्+लेह्य+सु । श्वलेह्य+सु । श्वलेह्यः । यहां लेह्यः' पद में लिह आस्वादने (अ०3०) धातु से ऋहलोर्ण्यत्' (३।१।१२४) से कृत्य संज्ञक ण्यत् प्रत्यय है।
(२) काकपेया। काक+भिस्+पेया+सु । काकपेया+सु । काकपेया। यहां 'पा पाने (भ्वा०प०) धातु से 'अचो यत्' (३।१।९७) से कृत्य संज्ञक यत् प्रत्यय है। स्त्रीत्व विवक्षा में 'अजाद्यतष्टा (४।१।३) से टाप् प्रत्यय होता है। पेय+टाप्=पेया।
विशेष-कृत्या:' (३।२।९५) से लेकर 'ऋहलोर्ण्यत्' (३।२।१२४) तक कृत्य-प्रत्ययों का अधिकार है। यहां उनमें से केवल यत् और ण्यत् प्रत्यय का ग्रहण करना अभीष्ट है, शेष तव्यत् आदि प्रत्ययों का नहीं। व्यञ्जनवाचि
(४) अन्नेन व्यञ्जनम्।३४। प०वि०-अन्नेन ३।१ व्यञ्जनम् १।१ । अनु०-तृतीया' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-व्यञ्जनं सुप् अन्नेन सुपा सह विभाषा समासस्तत्पुरुषः ।
अर्थ:-व्यञ्जनवाचि तृतीयान्तं सुबन्तम् अन्नवाचिना समर्थन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्यते तत्पुरुषश्च समासो भवति । संस्कार्यमोदनादिकमन्नं भवति, संस्कारकं दध्यादिकं च व्यञ्जनमुच्यते ।
उदा०-दना उपसिक्त ओदन इति दध्योदनः। क्षीरेण उपसिक्त ओदन इति क्षीरोदनः।
आर्यभाषा-अर्थ-(व्यञ्जनम्) व्यञ्जनवाची (तृतीया) तृतीयान्त सुबन्त का (अन्नेन) अन्नवाची समर्थ सुबन्त के साथ (विभाषा) विकल्प से समास होता है और उसकी (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है। संस्कार करने योग्य ओदन आदि को अन्न कहते हैं और संस्कार के हेतु दही आदि को व्यञ्जन कहते हैं।
उदा०-दध्ना उपसिक्त ओदन इति दध्योदनः । दही से सींचा हुआ भात । क्षीरेण उपसिक्त ओदन इति क्षीरौदनः । दूध से सींचा हुआ भात।
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