Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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द्वितीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः
३७६ एक-दूसरे पर दण्डों से परस्पर प्रहार करके जो युद्ध प्रवृत्त हुआ उसे दण्डादण्डि' कहते हैं। मुसलैश्च मुसलैश्च प्रहृत्य इदं युद्धं प्रवृत्तमिति मुसलामुसलि। एक-दूसरे पर मुसलों से परस्पर प्रहार करके जो युद्ध प्रवृत्त हुआ उसे 'मुसलामुसलि' कहते हैं।
सिद्धि-केशाकेशि । केश+सुप्+केश+सुप्। केश+केश+इच् । केशा+केश्+इ। केशाकेशि+सु। केशाकेशि।
यहां दो सरूप पद-'केशेषु, केशेषु' इनका 'इदम्' (युद्ध) अर्थ में इस सूत्र से बहुव्रीहि समास है। 'इच् कर्मव्यतिहारे' (५।४।१२७) से समासान्त इच् प्रत्यय तथा 'अन्येषामपि दृश्यते' (६।३।१३७) से पूर्वपद को दीर्घ होता है। यहां दो केश पद अपने अर्थ से अन्य युद्ध पद के अर्थ के वाचक हैं। ऐसे ही-कचाकचि, दण्डादण्डि, मुसलामुसलि। सह (तुल्ययोगे)
तेन सहेति तुल्ययोगे।२८। प०वि०-तेन ३।१ सह अव्ययम्, इति अव्ययम्, तुल्ययोगे ७१।
स०-तुल्येन योग इति तुल्ययोग:, तस्मिन-तुल्ययोगे (तृतीयातत्पुरुषः)।
अनु०-विभाषा, बहुव्रीहि: इति चानुवर्तते। अन्वय:-तुल्ययोगे सहेति सुप् तेन सुपा सह विभाषा समासो बहुव्रीहिः ।
अर्थ:-तुल्ययोगेऽर्थे वर्तमानं सह इति सुबन्तं तेन इति तृतीयान्तेन समर्थेन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्यते, समासश्च बहुव्रीहिर्भवति ।
उदा०-पुत्रेण सहेति सपुत्रः । सपुत्र आगत: पिता। छात्रैः सहेति सच्छात्रः। सच्छात्र आगत उपाध्याय: ।
आर्यभाषा-अर्थ-(तुल्ययोगे) तुल्ययोग (साथ) अर्थ में विद्यमान (सह इति) 'सह' इस सुबन्त का (तेन) तृतीयान्त समर्थ सुबन्त के साथ (विभाषा) विकल्प से समास होता है और उसकी (बहुव्रीहिः) बहुव्रीहि संज्ञा होती है।
उदा०-पुत्रेण सहेति सपुत्रः । सपुत्र आगत: पिता। पिता पुत्र सहित आया है। छात्रैः सहेति सच्छात्रः । सच्छात्र आगत उपाध्याय: । उपाध्याय छात्रों सहित आया है।
सिद्धि-सपुत्रः । सह+सु+पुत्र+भिस् । सह+पुत्र । सपुत्र+सु । सपुत्रः ।
यहां तुल्ययोग अर्थ में विद्यमान सह शब्द का तृतीयान्त पुत्र के साथ बहुव्रीहि समास है। बहुव्रीहि समास में दोनों पद उपसर्जन होते हैं अत: 'वोपसर्जनस्य' (६।३।८०) से
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