Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

View full book text
Previous | Next

Page 568
________________ द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः ५२७ यहां इण् गतौ (अदा०प०) धातु से सामान्य भूतकाल में लुङ्' (३।२।११०) से लुङ्' प्रत्यय है। लि लुर्डि' (३।२।४३) से चिल' प्रत्यय और उसके स्थान में ले: सिच्' (३।२।४४) से 'सिच्' आदेश है। 'इणो गालुङि' (२।४।४५) से आर्धधातुक विषय में 'इण' के स्थान में 'गा' आदेश होता है। इस सेत्र से 'गा' धातु से परे सिच्-प्रत्यय का लुक् होता है। (२) अस्थात्। 'छा गतिनिवृत्तौ (भ्वा०प०)। (३) अदात् । डुदाञ् दाने (जु० उ०)। (४) अधात् । डुधाञ् धारणपोषणयो:' (जु०उ०)। (५) अपात् । 'पा पाने' (भ्वा०प०)। (६) अभूत। 'भू सत्तायाम्' (भ्वा०प०)। विशेष-घु-दाधा घ्वदाप्' (१।१।२०) से दा' रूप और 'धा' रूप धातुओं की घु' संज्ञा की गई है। उनका यहां ग्रहण किया जाता है। वा सिच्-प्रत्ययस्य (२०) विभाषा घ्राधेट्शाच्छासः ७८। प०वि०-विभाषा ११ घ्रा-धेट्-शा-छा-स: ५।१। स०-घ्राश्च धेट् च शाश्च छाश्च साश्च, एतेषां समाहारो घ्राधेट्शाच्छासा:, तस्मात्-घ्राधेट्शाच्छास: (समाहारद्वन्द्वः) । अनु०-लुक् सिच: परस्मैपदेषु इत्यनुवर्तते। अन्वय:-घ्राधेट्शाच्छास: सिचो विभाषा परस्मैपदेषु। अर्थ:-घ्राधेट्शाच्छासाभ्यो धातुभ्य उत्तरस्य सिच्-प्रत्ययस्य विकल्पेन लुग् भवति, परस्मैपदेषु प्रत्ययेषु परत:। उदा०-(१) घ्रा-अघ्रात्, अघ्रासीत्। (२) धेट्-अधात्, अधासीत्। (३) शा-अशात्, अशासीत्। (४) छा-अच्छात्, अच्छासीत्। (५) सा-असात्, असासीत्। आर्यभाषा-अर्थ-(प्राधेट्शाच्छास:) घ्रा, धेट, शा, छा और सा धातुओं से परे (सिच:) सिच्-प्रत्यय का (विभाषा) विकल्प से (लुक) लोप होता है (परस्मैपदेषु) परस्मैपद प्रत्यय परे होने पर।। उदा०-(१) घ्रा-अघ्रात, अघ्रासीत् । उसने सूघा। (२) धेट्-अधात्, अधासीत् । उसने पीया। (३) शा-अशात, अशासीत् । उसने छीला। (४) छा-अच्छात्, अच्छासीत् । उसने काटा। (५) सा-असात. असासीत् । उसने समाप्त किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590