Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः से चव (नट) होता है। उपसर्गादसमासेऽपि णोपदेशस्य' (८।४।१४) से णत्व होता है।
(४) आव: । आङ् वृ+लुङ्। आ+अट्+वृ+च्लि+ल। आ+a+o+तिम्। आ+व+त्। आ+व+0 | आवः।
यहां वृञ् वरणे (स्वा०उ०) धातु से पूर्ववत् 'लुङ्' और चिल' प्रत्यय है। इस सूत्र से न्ति' प्रत्यय का लुक् होता है। सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से 'वृञ्' को गुण (वर्) और हल्ङयब्भ्यो दीर्घात्०' (६।१।६८) से त्' का लोप होता है।
(५) धक् । दह+लुङ् । दह्+चिल+ल । दह+o+सिप् । दह+o+स् । दह+० । दघ् । धघ् । धम् । धक्।
___ यहां दह भस्मीकरणे (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् लुङ्' और च्लि' प्रत्यय है। इस सूत्र से चिल' प्रत्यय का लुक् होता है। हल्याब्भ्यो दीर्घात०' (६।१।६८) से स्' का लोप होता है। 'दादेर्धातोर्घः' (८।२।३२) से 'दह' के ह' को घ्', एकाचो वशो भष्०' (८।२।३७) से 'दह' के 'द्' को 'ध्', 'झलां जशोऽन्ते (८।२।३९) से 'घ' को जस्='ग्' और 'वाऽवसाने (८१४१५६) से 'ग्' को चर् 'क्' होता है। बहुलं छन्दस्यमाङ्योगेऽपि (६।४।७५) से अट् आगम नहीं है।
(६) आप्राः । आङ्+प्रा+लुङ् । आ+अट्+प्रा+च्लि+ल। आ+प्रा+o+सिप् । आ+प्रा+स् । आप्राः।
यहां आपूर्वक प्रा पूरणे (अ०प०) धातु से पूर्ववत् लुङ्' और 'च्लि' प्रत्यय है। इस सूत्र से च्लि' प्रत्यय का लुक होता है। 'स"सजुषो रुः' (८।२।६६) से स्' को रुत्व और खरवसानयोर्विसर्जनीय:' (८।३।१५) से विसर्जनीय होता है।
(७) वर्क् । वृ+लुङ् । वृ+च्लि+। वृ+o+तिप्। व+त्। वर्ज+० । वर्ग।
वर्क।
यहां वृजी वर्जने' (अदा०आ०/रुधा०प०/चु०3०) धातु से पूर्ववत् लुङ्' और च्लि' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'च्लि' प्रत्यय का लुक् होता है। पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से वृज्' को गुण (वर्ज), 'हल्याब्भ्यो दीर्घात०' (६ ।२।६८) से त्' का लोप, चो: कुः' (८।२।३०) से ज्' को कुत्व (ग) और वाऽवसाने (८१४१५६) से चत्व (क) होता है। बहुलं छन्दस्यमाङ्योगेऽपि (६।४।७५) से अट् आगम नहीं होता है।
(८) अक्रन्। कृ+लुङ्। अट्+कृ+च्लि+। अ+कृ+o+झि। अ+कृ+अन्ति। अ+कृ+अन् । अक्रन्।
यहां 'डुकृञ् करणे (तना०3०) धातु से पूर्ववत् 'लुङ्' और 'च्लि' प्रत्यय है। इस सूत्र से न्ति' प्रत्यय का लुक् होता है। 'झोऽन्तः' (७।१।३) से झ्' को अन्त आदेश और
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