Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
५३२
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् 'इतश्च' (३।४।१००) से इकार का लोप होता है। 'इको यणचि (६१२७७) से 'ऋ' को 'र' होता है।
(९) अग्मन् । गम्+लुङ्। अट्+गम्+चिल--। अ+गम्+o+झि। अ+गम्+अन्ति। अ+गम्+अन्त्। अगम्+अन् । आमन्।
___ यहां गम्लु गतौं' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् लुङ्' और 'च्लि' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'च्लि' प्रत्यय का 'लुक्’ होता है। गमहनजन०' (६।४।९२) से गम् धातु का उपधा-लोप होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(१०) अज्ञत। जन्+लुङ्। अट्+जन्+च्लि+ल। अ+जन्+झ। अ+जन्+अत। अ+जन्+अत। अ+ +अत। अज्ञत।
यहां जनी प्रादुर्भावे' (दिवा०आ०) धातु से पूर्ववत् 'लुङ्' और चिल' प्रत्यय है। इस सूत्र से चिल' प्रत्यय का लुक्' होता है। 'आत्मनेपदेष्वनत:' (७।११५) से 'झ्' के स्थान में 'अत्' आदेश है। 'गमहनजन०' (६।४।९८) से जन् का उपधा-लोप होता है। 'स्तो: श्चुना श्चुः' (८।४।४०) से जन्' के न्' को चवर्ग (ज्) होता है।
आम्प्रत्ययस्य
(२३) आमः।८१। वि०-आम: ५।१। अनु०-लुक्, लेरिति चानुवर्तते। अन्वय:-आमो ले क्। अर्थ:-आम उत्तरस्य लिट्-प्रत्ययस्य लुग् भवति । उदा०-ईहाञ्चक्रे । ऊहाञ्चक्रे।
आर्यभाषा-अर्थ-(आम:) आम् प्रत्यय से परे (ले:) लिट् प्रत्यय का (लुक्) लोप होता है।
उदा०-ईहाञ्चक्रे । उसने चेष्टा की। ऊहाञ्चक्रे । उसने वितर्क किया।
सिद्धि-(१) ईहाञ्चक्रे । ईह्+लिट् । ईह्+आम्+लि। ईह्+आम्+० । ईहाम्+सु। ईहाम्+० । ईहाम्। ईहाम्+कृ+लिट् । ईहाम्+क+कृ+ए। ईहां+च+कृ+ए। ईहाञ्चक्रे।
यहां 'ईह चेष्टायाम् (भ्वा०आ०) धातु से अनद्यतन परोक्ष भूतकाल में परोक्षे लिट्' (३।२।११५) से लिट् प्रत्यय है। 'इजादेश्च गुरुमतोऽनृच्छ:' (१।३।३६) से आम्-प्रत्यय होता है। इस सूत्र से लिट् का लोप होता है। कृञ् चानुप्रयुज्यते लिटि' (३।११४०) से आम्-प्रत्यय के पश्चात् लिट् परे होने पर कृ' धातु का प्रयोग होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org