Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ___ आर्यभाषा-अर्थ-(साधुनिपुणाभ्याम्) साधु और निपुण पद से संयुक्त शब्द में (अर्चायाम्) पूजा अर्थ में (सप्तमी) सप्तमी विभक्ति होती है (अप्रते:) यदि वहां प्रति' शब्द का प्रयोग न हो।
उदा०-(१) साधु-साधुर्देवदत्तो मातरि । देवदत्त माता की पूजा करने में अच्छा है। साधुर्यज्ञदत्त: पितरि । यज्ञदत्त पिता की पूजा करने में अच्छा है। (२) निपुण-निपुणो देवदत्तो मातरि । देवदत्त माता की पूजा करने में कुशल है। निपुणो यज्ञदत्तो पितरि । यज्ञदत्त पिता की पूजा (सेवा) करने में कुशल है।
सिद्धि-साधुर्देवदत्तो मातरि। यहां साधु पद से संयुक्त माता शब्द में पूजा अर्थ में सप्तमी विभक्ति है। यहां प्रति' शब्द के प्रयोग का प्रतिषेध इसलिये किया गया है कि यहां सप्तमी विभक्ति न हो-साधुर्देवदत्तो मातरं प्रति। यहां लक्षणेत्थंभूताख्यानः' (१।४।८९) से प्रतिशब्द की कर्मप्रवचनीय संज्ञा और कर्मप्रचनीययुक्ते द्वितीया (२।३।८) से द्वितीया विभक्ति होती है। तृतीया सप्तमी च
(६) प्रसितोत्सुकाभ्यां तृतीया च।४४। प०वि०-प्रसित-उत्सुकाभ्याम् ३।२ तृतीया १।१ च अव्ययपदम् ।
स०-प्रसितश्च उत्सुकश्च तौ-प्रसितोत्सुकौ, ताभ्याम्प्रसितोत्सुकाभ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-सप्तमी इत्यनुवर्तते। अन्वय:-प्रसितोत्सुकाभ्यां युक्ते शब्दे तृतीया सप्तमी च।
अर्थ:-प्रसितोत्सुकाभ्यां पदाभ्यां संयुक्ते शब्दे तृतीया सप्तमी च विभक्तिर्भवति।
उदा०-(१) प्रसित:-केशै: प्रसितो देवदत्त: । केशेषु प्रसितो देवदत्तः । (२) उत्सुक:-केशैरुत्सुको यज्ञदत्त: । केशेषु उत्सुको यज्ञदत्त: ।
आर्यभाषा-अर्थ-(प्रसितोत्सुकाभ्याम्) प्रसित और उत्सुक पदों से संयुक्त शब्द में (तृतीया) तृतीया (च) और (सप्तमी) सप्तमी विभक्ति होती है।
उदा०-(१) प्रसित-केशैः प्रसितो देवदत्त: । केशेषु प्रसितो देवदत्त: । देवदत्त केशों के शृंगार में फंसा हुआ। (२) उत्सुक-केशरुत्सुको यज्ञदत्त: । केशेषु उत्सुको यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त केशों की सुन्दरता में उत्सुक है।
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