Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 565
________________ ५२४ का लुक् हो जाता है । 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से प्राप्त गुण का न धातुलोपे आर्धधातुके (१1१1४ ) से निषेध होता है । 'अचि श्नुधातुभ्रुवां टवोरियङुवङौं' (६१४१७७) से धातु को 'उवङ् ' आदेश हो जाता है। (२) 'पूञ् पवनें' (क्रया० उ० ) से 'त्रसुध्वंसु अध:पतने' (भ्वा०प०) से सनीस्रंसः और दनीदध्वंसः शब्द सिद्ध होते हैं। पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) लालपीति । लप्+यङ् । लप्+लप्+य। ल+लप्+य। लालप्य+लट् । लालप्य+शप्+तिप्। लालप्य+०+ति। लालप्+०+ईट्+ति । लालपीति । यहां 'लप् व्यक्तायां वाचि' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् यङ्-प्रत्यय है। 'दीर्घोऽकित: ' (७/४/८३) से अभ्यास को दीर्घ और 'यङो वा' (७ । ३ । ९४ ) से ईट् आगम होता है। यहां बहुलवचन से 'अच्' प्रत्यय से अन्यत्र भी इस सूत्र 'यङ्' का लुक् होगया है । यङ्लुक् विषय को 'चर्करीतं च' (अदादिगणवार्तिक) से अदादिगण में मानने से 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:' (२।४/७२) से 'शप्' प्रत्यय का भी लुक् हो जाता है। (४) वेद व्यक्तायां वाचि' (भ्वा०प०) से वावदीति । शपः श्लुः (१७) जुहोत्यादिभ्यः श्लुः । ७५ । प०वि० - जुहोति - आदिभ्यः ५ । ३ श्लुः १ । १ । स०-जुहोतिरादिर्येषां ते जुहोत्यादयः, तेभ्य:- जुहोत्यादिभ्यः (बहुव्रीहि: ) । अनु०-शप इत्यनुवर्तते । अन्वयः - जुहोत्यादिभ्यः शपः श्लुः । अर्थ:- जुहोत्यादिभ्यो धातुभ्य उत्तरस्य शप्-प्रत्ययस्य श्लुर्भवति । उदा०-जुहोति । बिभेति । नेनेक्ति । 1 आर्यभाषा-अर्थ- (जुहोत्यादिभ्यः) जुहोति आदि धातुओं से परे (शप: ) शप्-प्रत्यय का ( श्लुः) श्लु = लोप होता है । उदा० - जुहोति । वह देता है, खाता है, लेता है । बिभेति । वह डरता। नेनेक्ति । वह शुद्ध करता/ पोषण करता है। सिद्धि - (१) जुहोति । हु+लट् । हु+शप्+तिप् । हु+0+ति । हु+हु+ति । झु+हु+ति । जु+हो+ति । जुहोति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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