Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 563
________________ ५२२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-अदिप्रभृतिभ्यो धातुभ्य उत्तरस्य शप्-प्रत्ययस्य लुग् भवति I उदा०- अत्ति । हन्ति । द्वेष्टि । आर्यभाषा-अर्थ- (अदिप्रभृतिभ्यः) धातुपाठ के अदादिगण में पठित धातुओं से परे (शपः) शप्-प्रत्यय का ( लुक्) लोप हो जाता है। उदा०- अत्ति । वह खाता है । हन्ति । वह मारता है । द्वेष्टि । वह द्वेष करता है । सिद्धि-अत्ति | अद्+लट् । अद्+शप्+तिप् । अद्+0+ति । अत्ति । यहां 'अद् भक्षणे' (अदा०प०) धातु से वर्तमानकाल में 'वर्तमाने लट्' (३ / २ / १२३) से लट् प्रत्यय है । 'कर्तरि शप्' ( ३।१।६८ ) से शप्-प्रत्यय होता है। इस सूत्र से अदादिगण की अद् धातु से 'शप्' प्रत्यय का लुक हो जाता है। विशेष- पाणिनीय धातुपाठ में अदादिगण की सब धातु देख लेवें । शप्प्रत्ययस्य (बहुलम्) - (१६) बहुलं छन्दसि । ७३ । प०वि० - बहुलम् १ । १ छन्दसि ७ । १ । अनु० - शप, लुक् इति चानुवर्तते । अन्वयः-छन्दसि बहुलं शपो लुक् । अर्थ:-छन्दसि विषये शप्-प्रत्ययस्य बहुलं लुग् भवति । उदा०-(१) शपो लुङ् न वृत्रं हनति । (ऋ० ८।८९।३) । अहिः शयते । (२) शपो लुक् - त्राध्वं नो देवाः । (०२।२९ । ६) । आर्यभाषा - अर्थ - (छन्दसि ) वेदविषय में (शप: ) शप्-प्रत्यय का (बहुलम् ) बहुलता से (लुक) लोप होता है। उदा०- - (१) शप का लुक् नहीं - वृत्रं हनति । वह वृत्र को मारता है । अहि: शयते। अहि (सर्प) सोता है । (२) शप का लुक् - त्राध्वं नो देवाः । हे विद्वानो ! तुम हमारा पालन करो। सिद्धि - (१) हनति । हन्+लट् । हन्+शप्+तिप् । हन्+अ+ति। हनति। यहां 'हन हिंसागत्यो:' ( अदा०प०) धातु से वर्तमानकाल में 'वर्तमाने लट् (३1२1१२३) से 'लट्' प्रत्यय है। 'कर्तरि शप्' (३1२1६८) से 'शप्' प्रत्यय है। यह धातु अदादिगण की है । 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:' ( २/४/७२ ) से शप् का लुक् कहा गया है किन्तु इस सूत्र से उक्त वैदिक प्रयोग में 'शप्' का 'लुक्' नहीं होता है। ऐसे ही - शीङ् स्वप्ने' (अदा० आ०) से- शयते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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